Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| भद्रबाहु संहिता
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(अल्पचन्द्रं च) और यदि अल्प चन्द्र हो तो (द्वीपाश्च) द्वीप और (म्लेच्छाः ) म्लेच्छ (पूर्वापरा) पूर्व पश्चिम् के (द्विजा:) ब्राह्मण (दीक्षिताः) मुनि (क्षत्रियामात्या:) क्षत्रिय, मन्त्री (शूद्रा:) शूद्र (पीडामवाप्नुयुः) आदि पीड़ा को प्राप्त होते हैं।
भावार्थ-अगर अल्प राहु चन्द्रमा को ग्रहण करे तो द्वीप, म्लेच्छ पूर्व और पश्चिम के ब्राह्मण, मुनि, क्षत्रिय, शूद्र आदि पीड़ा को प्राप्त होते हैं॥४८॥
यतो राहसेच्चन्द्रं ततो यात्रा निवेशयेत्।
वृत्ते निवर्तते यात्रा यतो तस्मान्महद् भयम्॥४९ ।। (यतोराहप्रच्चन्द्र) जैसे राह ने चन्द्रमा ग्रहण किया (ततो यात्रां निवेशयेत) उस समय की यात्रा निष्फल होती है (वृत्तेनिवर्ततेयात्रा) इस लिये यात्रार्थि ऐसे ही वापस लौट आता है (तस्मान्महद्भयम्) इसलिये ऐसी यात्रा में महान भय होगा।
भावार्थ-चन्द्र ग्रहण में यात्रा नहीं करना चाहिये, यात्री की यात्रा निष्फल होती है क्योंकि उसमें भय होता है॥४९॥
गृह्णीयादेकमासेन् चन्द्रसूर्यो यदा तदा।
रुधिरवर्ण संसक्ता सङ्ग्रामे जायते मही॥५०॥ (गृह्णीयादेक मासेन्) एक ही महीने में (चन्द्रसूर्यो यदा तदा) जब चन्द्र और सूर्य दोनों ही ग्रहण एक साथ हो तो (रुधिरवर्ण संसक्ता) रुधिर वर्ण से संसक्त (सङ्ग्रामे जायते मही) पृथ्वी पर संग्राम होता है।
भावार्थ-जब एक महीने में दोनों ही ग्रहण लग जाय चन्द्र और सूर्य तो इस पृथ्वी पर महान् युद्ध होता है जिससे पृथ्वी पर रक्त की नदियाँ बहने लगती हैं।॥५०॥
चौराश्च यायिनो म्लेच्छा प्रन्ति साधून नायकान्।
विरुध्यन्ते गणाश्चापि नृपाश्च विषये चराः॥५१॥ उक्त दोनों ग्रहणों के होने पर (चौराश्च) चोर लोग, (यायिनो) यात्रिकों व (म्लेच्छा) म्लेच्छ (साधून) साधुओं को (नायकान्) नायकों को (घ्नन्ति) मारते हैं (गणाश्चापि विरुध्यन्ते) गणों का भी विरोध होता है (नृपाश्चविषयेचराः) और राजाओं को भी राजदूत रोक लेते हैं।