Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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विंशतितमोऽध्यायः
ऊवं प्रस्पन्दते चन्द्रश्चित्रः संपरिवेष्यते।
कुरुते मण्डलं स्पष्टस्तदा विन्द्याद् ग्रहागमम् ॥ ३८॥ (ऊदचं प्रस्पन्दते चन्द) यदि चन्द्र ऊपर की और स्पदिन्त होता है (चित्र: संपरिवेष्यते) विचित्र प्रकार परिवेष से युक्त (स्पष्ट: कुरुते मण्डलं) स्पष्ट मण्डल से युक्त (तदा) तब (ग्रहागमम् विन्द्याद्) ग्रह का आगमन जानो।।
भावार्थ-यदि चन्द्र ऊपर की ओर स्पदित होता हुआ विचित्र प्रकार परिवेष मण्डल से युक्त हो तो ग्रहों का आगमन होने वाला है। ३८।।
यतो विषय घातश्च यतश्चपशु-पक्षिणः ।
तिष्ठन्ति मण्डलायन्ते ततो विन्द्याद् ग्रहागभम् ।। ३९॥ (यतोविषयघातश्च) जब देश के विषय का घात हो (यतश्वपशु पक्षिणः) जहाँ पर पशु और पक्षी (मण्डलयन्तेतिष्ठन्ति) मण्डलाकार ठहरते हैं (ततो ग्रहागमम् विन्द्याद्) वहाँ पर ग्रहों का आगमन समझों।
भावार्थ-जब देश के विषय का घात हो जहाँ पर पशु और पक्षी मण्डलाकार ठहरते हो वहाँ पर समझो ग्रहों का आगमन होने वाला हैं ।। ३९॥
पाण्डुर्वा द्वावलीढो वा चन्द्रमा यदि दृश्यते।
व्याधितो हीनरश्मिश्च यदा तत्त्वे निवेशनम्।। ४०॥ (यदि) जब (चन्द्रमा) चन्द्रमा (पाण्डुर्वा द्वावलीढो वा) पाण्डुवर्ण का या द्विगुणित चबाया हुआ (दृश्यते) दिखता है तो (व्याधितोहीनरश्मिश्च) व्यथित और हीन रश्मि वाला हो तो (यदा तत्त्वे निवेशनम्) तब समझो अवश्य चन्द्र ग्रहण होने वाला है।
भावार्थ-यदि चन्द्रमा पाण्डुवर्ण का हो या द्विगुणित दिखे व्यथित हो हीन किरण वाला हो तब समझो अवश्य राहु ग्रह का आगमन होने वाला है।। ४० ॥
यतः प्रबाध्यते वेषस्ततो विन्धाद् ग्रहागमम्। यतो वा मुच्यते वेषस्ततश्चन्द्रोविमुच्यते॥४१॥