Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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विंशतितमोऽध्यायः
का परिवेष धारण कर ले तो ( तदा) तब (राहु) राहु ( सर्वग्रासं कृत्वा) सर्वग्रास
करके चन्द्रमा को (तञ्चविमुञ्चति ) छोड़ देता है।
भावार्थ — अष्टमी का चन्द्रमा लाल प्रभा का परिवेष धारण करे तो राहु चन्द्रमा को सर्वग्रास करके छोड़ता है ॥ ३१ ॥
कृष्णपीता यदा कोटिर्दक्षिणाः स्याद्ग्रहः सितः । पीतो यदाऽष्टम्यां कोटी तदा श्वेतं ग्रहं वदेत् ॥ ३२ ॥
( यदाऽष्टम्यां ) जब अष्टमी के चन्द्रमा का श्रृंग (कृष्णपीताकोटि :) काला-पीला हो (दक्षिणा: स्याद्ग्रहः सित) तो दक्षिण में ग्रहण ' भी श्वेत होता है ( पीतो) पीला हो तो ( तदा) तब ( श्वेतं ग्रहं वदेत्) श्वत ग्रहण होगा ।
भावार्थ — जब अष्टमी का चन्द्रमा के दक्षिण श्रृंग काला पीला हो तो समझों ग्रहण भी श्वेत होगा और पीला हो तो श्वेत होगा ॥ ३२ ॥
दक्षिनामेवामा कपोत
मेचकाभा
तु
यदि चन्द्रमा की ( दक्षिणा मेचकाभा) दक्षिण शिखा मेचक वर्ण की हो (तु) तो ( कपोत ग्रहमादिशेत्) कपोत वर्ण का ग्रह दिखेगा, ( कपोत मेचकाभा कोटी) कपोत मेचक आभा का श्रृंग हो (तु) तो ( ग्रहमुपानयेत् ) ग्रहण का भी वैसा ही रंग होता है।
શું
कपोत
कोटी
ग्रहमादिशेत् । ग्रहमुपानयेत् ॥ ३३ ॥
भावार्थ — जब चन्द्रमा की दक्षिण शृंग मेचक आभा वाली हो तो ग्रहण का वर्ण कपोत वर्ण दिखेगा और कपोतमेचक आभा हो तो उसी वर्ण का ग्रह होगा ॥ ३३ ॥
पीतोत्तरा यदा कोटिदक्षिणाः रुधिर प्रभः । कपोतग्रहणं विन्धाद् पूर्व पश्चात् सितप्रभम् ॥ ३४ ॥
जब चन्द्रमा (दक्षिणाकोटि :) दक्षिण श्रृंग ( रुधिरप्रभः) लाल प्रभावाला हो तो ( कपोतग्रहणं ) ग्रहण भी कपोत रंग का होगा, ( पीतोत्तराकोटि) उत्तर की श्रृंग पीली हो तो वैसा रंग होगा, (पूर्व पश्चात् सितप्रभः) पहले और पीछे श्वेत प्रभा होगी ।