Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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विंशतितमोऽध्यायः
का (प्रकाशते) प्रकाशित होता है (वा) व ( उद्गच्छमान: ) उखड़ता हुआ (सोमो) चन्द्रमा हो ( तदा) तब ( राहुणा गृह्येत्) राहु के द्वारा ग्रहण किया जाता है।
भावार्थ — जब चन्द्रमा द्वितीया में श्वेत वर्ण का शोभित होता है व उखड़ता हुआ दिखे तो तब चन्द्रमा को राहु के द्वारा ग्रहण किया जाता है ॥ २४ ॥ यदा सोमोविवर्णो दृश्यतेयदि ।
तदा
राहुः पौर्णमास्यामुपक्रमेत् ॥ २५ ॥
( यदा) जब (तृतीयायां ) तृतीया में (सोमो) चन्द्र (यदि ) यदि (विवर्णोदृश्यते) विवर्ण दिखाई पड़े तो (पूर्वरात्रे ) पूर्व रात्रिमें (पौर्णमास्यामुपक्रमेत् राहुः ) पूर्णिमा को तब राहु ग्रहण करता है।
तृतीयायां पूर्वरात्रे
भावार्थ — जब तृतीया में चन्द्र यदि विवर्ण होकर देखा जाता है। पूर्णिमा की पूर्व रात्रि में चन्द्र को राहु ग्रहण करता है ॥ २५ ॥
अष्टम्यां तु यदा पौर्णमास्यां
चन्द्रो दृश्यते रुधिरप्रभः । तदाराहुरर्धरात्रमुपक्रमेत् ॥ २६ ॥
( यदा) जब ( चन्द्रो ) चन्द्रमा (अष्टम्यां ) अष्टमी को ( रुधिरप्रभः दृश्यते ) लाल प्रभावाला दिखाई दे तो (तु) तो (तदा) तब ( पौर्णमास्यां) पूर्णिमा को (राहुरर्धरात्र मुपक्रमेत्) राहु के द्वारा चन्द्रमा ग्रहण किया जाता है।
भावार्थ- जब चन्द्रमा अष्टमी को लाल प्रभावाला होता है, तब पूर्णिमा
को राहु के द्वारा चन्द्र ग्रहण किया जाता है ॥ २६ ॥
नवम्यां तु यदा चन्द्रः परिवेश्य तु सुप्रभः । अर्धरात्रमुपक्रम्य राहुभुपक्रमेत् ॥ २७ ॥
तदा
( यदा) जब ( चन्द्रः ) चन्द्र (नवम्यां नवमी को ( परिवेश्यत्तु सुप्रभः ) परिवेष सहित जिसकी सुप्रभा हो तो (अर्धरात्रमुपक्रम्य) अर्ध रात्रि में (तदा) तब (राहुमुपक्रमेत्) राहु का उपक्रम समझो ।
भावार्थ — जब चन्द्रमा नवमी को परिवेष सहित जिसकी सुप्रभा हो तो अर्द्धरात्रि में राहु का उपक्रम समझों ॥ २७ ॥