Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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कृष्णप्रभो यदा सोमो दशम्यां परिविष्यते।
पश्चाद् रात्रं तदा राहुः सोमं गृह्णात्य संशयः॥२८॥ (यदा) जब (सोमो) चन्द्र (कृष्णप्रभो) काली प्रभा से युक्त (दशम्यां परिष्यते) दशमी को दिखे तो (पश्चात् रात्रं) वो भी पिछली रात्रि में दिखे (तदा) तब (राहुः सोमं गृह्णात्यसंशयः) समझो राहु चन्द्रमा को ग्रहण करने वाला है इसमें कोई सन्देह नहीं हैं।
भावार्थ-जब काली प्रभा से युक्त चन्द्रमा दशमी के पिछली रात्रि में दिखे तो समझो चन्द्रमा को राहु लगने वाला है ।। २८ ।।
अष्टम्यां तु यदा सोमं श्वेता, परिवेषते।
तदा परिधवै राहुर्विमुञ्चति न संशयः ॥२९॥ (यदा) जब (अष्टम्यां) अष्टमी को (सोम) चन्द्रमा के ऊपर (श्वेताळं परिवेषते) सफेद आभा से युक्त परिवेष दिखाई पड़े (तु) तो (तदा) तब (परिघं वैराहुर्विमुञ्चति) राहु परिघ को छोड़ता है (न संशय:) इसमें कोई सन्देह नहीं है।
भावार्थ-जब अष्टमी के चन्द्रमा के ऊपर सफेद रंग का परिवेष दिखे तो समझो राहु परिघ को छोड़ने वाला है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।। २९ ।।
कनकाभो यदाऽष्टम्यां परिवेषेण चन्द्रमाः।
अर्धरात्रं तदा गत्वा राहुरुद्गिरतेपुनः॥३०॥ (यदाऽष्टम्यां) जब अष्टमी को (कनकाभो) सुवर्ण वर्ण के (परिवेषेण चन्द्रमा:) परिवेष से युक्त चन्द्रमा हो तो (तदा) तब (अर्धरात्रं गत्वा) अर्द्धरात्रि के जाने पर पूर्णिमा को (राहुरुदिगरते पुन:) राहु चन्द्रमा का अर्द्ध ग्रास करके छोड़ देता है।
भावार्थ-जब अष्टमी को चन्द्रमा सुवर्ण वर्ण के परिवेष से युक्त हो तो अर्द्ध रात्रि के जाने पर राहु चन्द्रमा को आधा खाकर छोड़ देता है। ३० ।
परिवेषोदयोऽष्टम्यां चन्द्रमा रुधिरप्रभः।
सर्वप्रासं तदा कृत्वा राहुस्तञ्चविमुञ्चति ॥ ३१॥ (अष्टम्यां चन्द्रमा) अष्टमी का चन्द्रमा (रुधिरप्रभ: परिवेषोदयो) लाल प्रभा