Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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अष्टादशोऽध्यायः
बुध के इस गति में विचरण करने से आर्थिक क्षति किसी बड़े नेता की मृत्यु देश में अर्थसंकट अन्नाभाव आदि फल घटित होते हैं। हस्त, अनुराधा या ज्येष्ठा नक्षत्र में बुध के विचरण करने से पापागति होती हैं इस गति के दिनों की संख्या ११ है इस गति में बुध के रहनेसेअनेक प्रकार की हानियाँ उठानी पड़ती हैं देश में राजनैतिक उलट-फेर होते हैं बिहार, आसाम और मध्यप्रदेश के मन्त्री मण्डल में परिवर्तन होता हैं।
देवल के मत से फलादेश—देवल ने बुध की चार गतियाँ बतलाई हैं ज्वी,वक्रा,अतिवक्रा विकला ये गतियों क्रमश: ३०, २४, १२ और ६ दिन तक रहती हैं। ऋज्वी गति प्रजा के लिये हितकारी वक्रा में शस्त्रभय अतिवक्रा में धनका नाश और विकला में भय तथा रोग होते हैं, पौष, आषाढ़, श्रावण, वैशाख और माघ में बुध दिखलाई दे तो संसार को भय अनेक प्रकार के उत्पात एवं धन-जन की हानि होती है यदि उक्त मासों में बुध अस्त हो तो शुभ, होता है। अश्विन या कार्तिक मासमें बुध दिखलाई दे तो शस्त्र, रोग, अग्नि, जल और क्षुधा का भय होता हैं। पश्चिम दिशा में बुध का उदय अधिक शुभ फल करता हैं। तथा सभी देश को शुभकारक होता हैं स्वर्ग, हरित या सस्यकर्माणि के समान रंग वाला बुध निर्मल और स्वच्छ होकर उदित होता हैं, तो सभी राज्यों और देशों के लिए मंगल करने वाला होता हैं।
___ इति श्रीपंचम श्रुत केवली दिगम्बराचार्य भद्रबाहु स्वामी विरचित भद्रबाहु संहिता का बुध संचार का वर्णन करने वाला अठारहवाँ अध्याय का हिन्दी भाषानुवाद करने वाली क्षेमोदय टीका समाप्त ।
(इति अष्टादशोऽध्यायः समाप्तः)