Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता ।
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धान्यं तदा न विक्रेयं संश्रयेच्च बलीयसम्।।
चिनुयात्तुषधान्यानि दुर्गाणि च समाश्रयेत्॥३६॥
उपर्युक्त स्थिति में (क्रूरः क्रुद्धश्च ब्रह्मघ्नो) क्रूर, क्रुध, ब्रह्मघाती और (यदि तिष्ठेद् ग्रहे: सह) यदि अन्य ग्रहों के साथ (तासु नक्षत्र वीथीषु) उन नक्षत्रों की वीथियों में हो तो (पर चक्रागमविन्द्यात्) परचक्र का आगमन होगा ऐसा समझो (तदा) तब (धान्यं न विक्रेय) धान्यों को ही बेचना चाहिये, (संश्रयेच्च वलीयसम्) बलवानों का सहारा लेवे (चिनुयात्तुषधान्यानि) धान्य और भूसा का संग्रह करे (दुर्गाणि च समाश्रयेत्) और मजबूत किले का सहारा लेवे।।
भावार्थ-उपर्युक्त स्थिति में क्रूर, कृध, ब्रह्मघाती अन्य ग्रहों के साथ उन नक्षत्रों की वीथि में गमन करे तो समझो परचक्र का आगमन होता है, ऐसी स्थिति में धान्यों को नहीं बेचे, बलवानों का सहारा लेवे, धान्यो व भूषों का संग्रह करे और कोई सुरक्षित दुर्ग का सहारा लेवे ॥ ३५-३६ ।।
उत्तराफाल्गुनीं भौमो यदा लिखति वामतः।
यदि वा दक्षिणं गच्छेत् धान्यस्या? महा भवेत्॥ ३७॥ (यदा) जब (भौमो) मंगल (वामत:) वाम भाग से (उत्तराफाल्गुनीं लिखति) दक्षिण में जावे तो (धान्यस्या? महाभवेत्) धान्य बहुत महँगा होता है।
भावार्थ-जब मंगल उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में वाम भाग से स्पर्श करता हुआ गमन करता है, अथवा दक्षिण की ओर गमन करे तो समझो धान्यों का व अनाजों का संग्रह करे ।। ३७॥
यदाऽनुराधां प्रविशेन्मध्ये न च लिखेत्तथा।
मध्यमं तं विजानीयात् तदा भौमविपर्यये॥३८॥ (यदाऽनुराधा भौम) जब मंगल अनुराधा नक्षत्रमें (प्रविशेन्मध्येन न च लिखेत्तथा) प्रवेश न करता हुआ मध्य में होते है, (विपर्यये) विपर्यः हो (तं) उसकों (मध्यमं विजानीयात्) मध्यम जानो।
भावार्थ-जब मंगल अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश न करे मध्य में रहे, प्रवेश करे स्पर्श न करे तो विपरीत फल होता है।। ३८ ।।