Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| एकोनविंशतितमोऽध्यायः |
स्थूल: सुवर्णों द्युतिमांश्च पीतो रक्तः सुमार्गो रिपुनाशनाय। भौमः प्रसन्नः सुमनः प्रशस्तो भवेत् प्रजानां सुखदस्तदानीम्॥३९॥
(स्थूल:) स्थूल (सुवर्णो) सुवर्ण, (द्युतिमांश्च) कान्तिमान् सुकर (पीतो) पीला (रक्तः) लाल (सुमागों) सुमार्गी गामी (रिपुनाशनाय) शत्रु को नाश करने वाला, (भौम) मंगल (प्रसन्न:) प्रसन्न (सुमनः) सुमन वाला (प्रशस्तो) प्रशस्त (भवेत्) होता है (प्रजानां सुखदस्तदानीम्) प्रजा को सुख देने वाला है।
भावार्थ-यदि मंगल स्थूल, सुवर्ण , कान्तिमान, सुकर पीला, लाल सुमार्गी, रिपु का नाशक प्रसन्न सुमन वाला, प्रशस्त होता प्रजा को सुख देता है।। ३९॥
विशेष—अब अध्याय में पहले के समान मंगल ग्रह का संचार व फल का वर्णन करेंगे।
यह मंगल बारह राशियों पर विचरण करता है और सभी का फल अलग-अलग होता है।
मंगल संचार बीस महीना वक्र आठ महीना और प्रवास चार महिने का होता है।
अलग-अलग दिशा में दिखने वाला मंगल ताम्रवर्ण का हो तो उसका फल होता है।
दक्षिण दिशा का मंगल ताम्रवर्ण का हो तो शुभ होता है, चोरों का नाश करता है वहीं मंगल उत्तर का हो तो चोरों का हित करने वाला है।
मंगल के पाँच वक्र होते है किसी अपेक्षा से बाहर भेद भी होते हैं, उषा, शोषमुख, व्याल, लोहित और लोहमुद्गर ये पाँच प्रधान वक्र हैं। इनमें कुछ शुभ और कुछ अशुभ भी होते हैं।
__ लोहित वक्र गुण उत्पन्न करता है, इसका फल राज्य में मतभेद होकर युद्ध होता है और रक्तमांस की कीचड़ हो जाती है।
इत्यादि अनेक प्रकार का वर्णन संहिता में मिलता है इसको जानकर इसके फल पर विचार कर अपने को बचाओ और दूसरे की भी रक्षा करो।
विवेचन–भौम का द्वादश राशियों में स्थित होने का फल- मेष राशिमें मंगल स्थित हो तो सभी प्रकार के अनाज महगे होते हैं। वर्षा अल्प होती है तथा