Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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एकोनविंशतितमोऽध्यायः
यदाऽष्टौ सप्त मासान् वा दीप्त: पुष्टः प्रजापतिः।
तदा सृजति कल्याणं शस्त्र मूच्छौं तु निर्दिशेत् ॥ ४॥ (यदा) जब (प्रजापति) मंगल (अष्ठौ सप्त मासान्) आठ व सात महीने तक (दीप्तः) प्रकाशमान होकर (पुष्ट:) पुष्ट हो तो (तदा) तब (कल्याण) कल्याण का सृजन करता है (शस्त्रमूच्छी तु निर्दिशेत्) तो शस्त्र मूर्छा को उत्पन्न करता है।
भावार्थ-जब मंगल आठ व सात महीने तक प्रकाशमान हो, पुष्ट हो तो कल्याण को करता है, और शस्त्र मूर्छा को उत्पन्न करता है ।। ४।।।
मन्ददीप्तश्च दृश्येत यदा भौमो चलेत्तदा।
तदा नानाविधं दुःखं प्रजानामहितं सृजेत्॥५॥ (यदा) जब (भौमो) मंगल (मन्ददीप्तश्च) मन्दी दीप्तिवाला (चलेत्तदा) गमन करता हुआ दिखाई पड़े तो (तदा) तब (प्रजानाम्) प्रजाओं के लिये (नानाविधं दु:खं) नाना प्रकार के दुःखों का व (अहितं सृजेत्) अहित का सृजन करता है।
भावार्थ-जब मंगल मन्द प्रकाशमान चलता हुआ दिखाई पड़े तो प्रजाओं के लिये नाना प्रकार के दुःखों की और अहित की उत्पत्ति करता है।।५।।
ताम्रो दक्षिण काष्ठास्थः प्रशस्तो दस्युनाशनः ।
ताम्रो यदोत्तरे काष्ठे तस्य दस्युतदा हितम्॥६॥
यदि (ताम्रोदक्षिण काष्ठस्थः) मंगल ताम्रवर्ण का दक्षिण में हो तो (प्रशस्तो) प्रशस्त है (दस्युनाशनः) चोरों का नाश करता है। यदि (ताम्रोयदोत्तरे काष्ठे) मंगल ताम्र वर्ण का उत्तर में होतो (तस्य दस्यु तदाहितम्) वह चोरों का हित करने वाला है।
भावार्थ-यदि मंगल ताम्रवर्ण का हो तो वह प्रशस्त है, क्योंकि चोरों का नाश करता है, और उसी प्रकार मंगल ताम्रवर्ण का उत्तर में हो तो वह चोरों का हित करने वाला है, याने चोरों का जोर ज्यादा बढ़ जाता है।।६।।
रोहिणी स्यात् परिक्रम्य लोहितो दक्षिणं व्रजेत्। सुरासुराणां जानानां सर्वेषामभयं वदेत्॥७॥