Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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यदि (रोहिणी परिक्रम्य) रोहिणी नक्षत्र को परिक्रमा देते हुए (लोहितो) मंगल (दक्षिणं व्रजेत्) दक्षिण में गमन करे तो (सुरा सुराणां जानानां) सुर-असुर और मनुष्यों को (सर्वेषामभयं वदेत) सबको अभय देता है।
भावार्थ-यदि रोहिणी नक्षत्र को प्रदक्षिणा देता हुआ मंगल दक्षिण में चला जाय तो सुरासुर और मनुष्य सबको ही अभय देता है।।७।।
क्षत्रियाणां विषादश्च दस्यूनां शस्त्रविभ्रमः।
गावोगोष्ठ समुद्राश्च विनश्यन्ति विचेतसः॥८॥ उसी प्रकार रोहिणी नक्षत्र पर मंगल कुचेष्टा करता हुआ दिखे तो (क्षत्रियाणां विषादश्च) क्षत्रियों के लिये विषाद का कारण (दस्यूनां शस्त्रविभ्रमः) चोरों के लिये शस्त्र विभ्रम और (गावोगोष्ठ समुद्राश्च) गाँव, गोष्ठ, समुद्र (विनश्यन्ति विचेतसः) सब नाश हो जाते हैं।
भावार्थ- यदि रोहिणी नक्षत्र पर मंगल कचेष्टा करता हुआ दिखाई पड़े तो क्षत्रियों के लिये विषाद का कारण चोरों के लिये शस्त्र विभ्रम का कारण, गाँव, गोष्ठ और समुद्र के लिये नाश का कारण होता है।॥ ८॥
स्पृशेल्लिखेत् प्रमद् वा रोहिणीं यदि लोहितः।
तिष्ठते दक्षिणो वाऽपि तदा शोक भयङ्करः ॥९॥ (यदि) यदि (लोहितः) मंगल (रोहिणी वा स्पृशेल्लिखेत् प्रमर्देद) रोहिणी नक्षत्र का स्पर्श करे व भेदन करे, प्रमर्दित करे (वाऽपि) और भी (दक्षिणोतिष्ठते) दक्षिण में ठहरे तो (तदा) तब (शोक भयङ्करः) भयंकर शोक होता है।
भावार्थयदि मंगल रोहिणी नक्षत्र का स्पर्श करे व भेदन करे प्रमर्दित करे और दक्षिण में ठहरे तो तब भयंकर शोक होता है।॥९॥
सर्व द्वाराणिदृष्ट्वाऽसौ विलम्बं यदि गच्छति।
सर्वलोकहितो ज्ञेयो दक्षिणोऽसृग् लोहितः॥१० ।। (लोहितः) मंगल (यदि) यदि (सर्व द्वाराणिदृष्ट्वाऽसौ) सभी द्वारों को देखता हुआ (विलम्ब) विलम्ब से (दक्षिणोऽसृग् गच्छति) दक्षिण जाता है तो (सर्वलोक हितोज्ञेयो) सर्व लोक का हित जानना चाहिये।