Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
५४९
अष्टादशोऽध्यायः
भावार्थ-शुक्र दक्षिण पथ में हो. चन्द्र गौधे की और उत्तरमें हो, बुध उनका घात करे,तो समझो राज्य में अग्नि भय होगा ।। १७॥
यदा बुधोऽरुणाभः स्यादुर्भगो वा निरीक्ष्यते।
तदा स स्थावरान् हन्ति प्रह्म-क्षत्रं च पीडयेत्॥१८॥ (यदा) जब (बुधोऽरुणाभः) अरुणआभा वाला होकर (स्यादुर्भगोवा निरीक्ष्यते) वा कुरूप दिखलाई पड़े तो (तदा) तब (स स्थावरान् हन्ति) वह स्थावरों को मारता है (प्रह्म क्षत्रं च पीडयेत्) द्विजों और ब्राह्मणों को पीड़ा पहुँचाता हैं।
भावार्थ-जब बुध लाल आभा वाला होकर कुरूप दिखलाई पड़े तो, तब स्थावरों को मारता है, और ब्राह्मण व क्षत्रियों का नाश करता है॥१८॥
चांद्रस्य दक्षिणां वीर्थी भित्वा तिष्ठेद् य ग्रहः ।
रूक्षः स कालसङ्काशस्तदा चित्रविनाशनम्॥१९॥ (चांद्रस्य दक्षिणां वीथीं) चांद के दक्षिण पथ में होकर (य ग्रहः भित्वा तिष्ठेद) जो ग्रह भेदन करता हुआ ठहरे (रूक्षः स काल सङ्काश;) और वे भी रूक्ष हो तो (चित्रविनाशनम्) चित्र का नाश करता है।
भावार्थ-बुध ग्रह चांद वीथि को भेदन कर और रूक्ष हो तो चित्र कलाकार को नाश करता है॥१९ ।।
चित्रमूर्तिश्च चित्रांश्च शिल्पिनः कुशलांस्तथा।
तेषां च बन्धनं कुर्यात् मरणाय समीहते ।। २०॥ (चित्रमूर्तिश्च) चित्रकला मूर्तिकला (चित्रांश्च) चित्र (शिल्पिन: कुशलांस्तथा) शिल्पिकला में कुशल (तेषां च बन्धनं कुर्यात) ऐसे लोगों का बन्धन करता है, (मरणाय समीहते) मरण कराता है।
भावार्थ-चित्रकला, मूर्तिकला, चित्र और शिल्पकला में कुशल ऐसे लोगों का मरण कराता है॥२०॥
भित्वा यदोत्तरां वीथीं दासकांशोऽवलोकयेत्। सोमस्य चोत्तरं शृङ्गं लिखेद् भद्रपदां वधेत् ।। २१॥