Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु मंहिता
शिल्पिनां दारुजीवीनां तदा पाण्मासिको भयः।
अकर्म सिद्धिः कलहो मित्रभेदः पराजयः ॥२२॥ (यदोत्तरां वीथीं भित्वा) जब बुध उत्तर वीथि का भेदन कर (दासकांशोऽवलोकयेट) घास-फूस को देखता है (सोमस्य चोत्तरं शृंग लिखेद) चन्द्रमा उत्तर शृंग का स्पर्श करे (भद्रपदां वधेत्) उत्तराभाद्रपद नक्षत्रका भेद करे तो (शिल्पिनां दारुजीवीनां) शिल्पियो को व लकड़ी का काम करने वालों को (तदा) तब (पाण्मासिको भयः) छह महीने में भय होता है। (अकर्मसिद्धिः कलहो) अकार्य की सिद्धि होती है, कलह होता है (मित्रभेद पराजयः) मित्रभेद और पराजय होती है।
भावार्थ-जब बुध उत्तरा पथ का भेदन करता हुआ घास-फूस, लकड़ी आदि को देखता है, चन्द्रमा उत्तर शृंग का स्पर्श करे उत्तराभाद्रपद नक्षत्रका भेद करे तो शिल्पियों को व लकड़ी का काम करने वालों को छठ महीने में भय होता है, अकार्य की सिद्धि होती है,मित्रभेद व पराजय होती हैं।। २१-२२॥
पीतो यदोत्तरां वीथीं शुरू भित्वा प्रलोयते।
तदा चतुष्पदो गर्भो कोशधान्यं बुधो वधेत् ।। २३॥ यदि बुध पीला वर्ण का होकर (उत्तरांवीथीं) उत्तर पथ में (गुरु) गुरु को (भित्वा) भेदन कर (प्रलीयते) अस्त हो जाय (तदा) तब (चतुष्पदोगर्भो) चार पाँव वाले पशुओं के गर्भ और (कोश धान्यं बुधो वधेत्) कोश, धान्य का नाश होता है ऐसा बुद्धिमान जानो।
भावार्थ-यदि बुध पीला वर्ण का होकर उत्तर वीथीं में गुरु का भेदन कर अस्त हो जाय तब चार पाँव वाले पशु और गर्भ, कोश, धान्य का नाश होता है ऐसा बुद्धिमानो ने कहा है।। २३॥
वैश्यश्चशिल्पिनश्चापि गर्भ मासञ्च सारथिः।
सो नयेद्भजते मासं भद्रबाहुवचो यथा ।। २४॥ (वैश्यश्चशिल्पिनश्चापि) उक्त प्रकार का बुध वैश्यों को व शिल्पियों को और भी (गर्भ मासञ्च सारथिः) गर्भो का एक महीने में नाश होता है, सारथियों