Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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अष्टादशोऽध्यायः
भावार्थ-जब तीनों गतियों में बुध नक्षत्रों को पुन: ग्रहण करता है, तो पूर्व रूप में धान्यों की उत्पत्ति अच्छी होती है तब सम्पत्ति भी उत्तम होती है।। १० ॥
बुधो यदोत्तरे मार्गे सुवर्णः पूजितस्तदा। , मध्यमे मध्यमो ज्ञेयो जघन्यो दक्षिणे पथि॥११॥
(यदोत्तरेमार्गे बुधो) पूर्वोत्तर मार्ग में बुध (सुवर्णः पूजितस्तदा) अच्छे वर्ण वालोंसे पूजित होता है (मध्यमे मध्यमो ज्ञेयो) मध्यमें मध्यम और (दक्षिणे जघन्यो) दक्षिणमार्ग में जघन्य जानना चाहिये।
___ भावार्थ-जब उत्तर मार्ग में बुध अच्छे वर्ण वालों द्वारा पूजित होता है, मध्यम में मध्यम और दक्षिण जघन्य जानना चाहिये॥११॥
वसु कुर्यादतिस्थूलो साम्रः शस्त्रप्रकोपनः।
अतश्चारुणवर्णश्च बुधः सर्वत्र पूजितः॥१२।। (बुध) बुध (वसु कुर्यादतिस्थूलो) अतिस्थूल हो तो धन की वृद्धि (ताम्रशस्त्रप्रकोपन:) ताम्रवर्ण का हो तो शस्त्रप्रकोप करता है (अतश्चारुणवर्णश्च) और अरुण वर्ण का हो तो (सर्वत्र पूजितः) सर्वत्र पूजित होता है।
भावार्थ-बुध अति स्थूल हो तो धन की वृद्धि होती है,ताम्रवर्ण का हो तो शस्त्र कोप होता है,और अरुण वर्ण का हो तो सर्वत्र पूजित होता है॥१२ ।।
पृष्ठतः पुरलम्भाय पुरस्तादर्थवृद्धये।
स्निग्धो रूक्षो बुधो ज्ञेयः सदा सर्वत्रगो बुधैः॥१३॥ (बुधो) बुध (पृष्ठतः पुरलम्भाय) पीछे हो तो नगर की प्राप्ति (पुरस्तादर्थ वृद्धये) सामने हो तो अर्थ वृद्धि के लिये होना, (स्निग्धो रूक्षो) स्निग्ध और रूक्ष बुध (सदा सर्वत्रगो बुधैः) सदा सर्वत्र गमन करने वाला होता है।
भावार्थ---बुध के सामने रहने पर धन का लाभ होता है,पीछे रहने पर नगर की प्राप्ति होती है, और स्निग्ध रूक्ष बुध सदा सर्वत्र गमन करने वाला होता है।।१३॥