Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
(बुधः पुरस्तादुत्थितो) सम्मुख उदय होकर बुध (पञ्चनक्षत्राणि) पाँच नक्षत्रों प्रमाण (चरेत् ) आचरण करता है (षष्ठे ) छठे ( ततश्चास्तामित: ) नक्षत्र पर अस्त होता है (सप्तमे दृश्यते परः ) और सातवें पर पुनः दिखता है।
भावार्थ — बुध सम्मुख होकर पाँच नक्षत्रों प्रमाण आचरण करता है, छठे पर अस्त होता है, सातवें पर पुनः दिखता है ॥ ७ ॥
उदित: पञ्चमेऽस्तमितः
पृष्ठतः
( पृष्ठतः उदितः) पृष्ठतः उदित होकर (सौम्यश्चत्वारि चरति ध्रुवम् ) बुधः चार नक्षत्र प्रमाण गमन करता है ( पञ्चमेऽस्तमितः षष्ठे ) पाँचवें पर अस्त होता है और छठे पर पुनः उदय होता है ।
भावार्थ-पीछे से उदित होकर बुध चार नक्षत्र प्रमाण गमन करता है, पाँचवें पर अस्त होता है, छठे पर पुनः उदय होता है ॥ ८ ॥
सौम्यश्चत्वारि
चरतिध्रुवम् । षष्ठे दृश्यते पूर्वतः पुनः ॥ ८ ॥
चत्वारि षट् तथाष्टौ कुर्यादस्तमनोदयौ । सौम्यायां तु विमिश्रायां संक्षिप्तायां यथाक्रमम् ॥ ९ ॥
च
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(सौम्यायां तु विमिश्रायां संक्षिप्तायां यथा क्रमम्) यथा क्रम से सौम्या, विमिश्रा, संक्षिप्ता गति में ( चत्वारिषट् तथाष्टौ च ) चार तथा आठ नक्षत्रों पर ( अस्तमनोदयौ
कुर्याद्) अस्त और उदय को बुध प्राप्त करता है ।
भावार्थ- सौम्या, विमिश्रा संक्षिप्ता गतिमें क्रमशः चार, छः और आठ नक्षत्रों पर अस्त और उदय को बुध प्राप्त होता है ॥ ९ ॥
नक्षत्रमस्यचिह्नानि पूर्वाभिः
पूर्णसस्यानां तदा
( यदा) जब ( नक्षत्रमस्यचिह्नानि ) इस चिह्न वाले नक्षत्र पर (गतिभिस्तिसृभिः) बुध पुनः गमन करता है (पूर्वाभिः पूर्णसस्यानां ) तो पूर्व में सस्यों की उत्पत्ति अच्छी होती है। (तदासम्पत्ति रुत्तमा) तब सम्पत्ति भी उत्तम होती है।
गतिभिस्तिसृभिर्यदा । सम्पत्ति रुत्तमा ।। १० ।