Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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अष्टादशोऽध्यायः
दस रात्रि (घोरायां तु पडालिके) घोर गति में छह दिन, (पापिकायां त्रिरात्रेण) पापीका गतिमें तीन रात (दुर्गायां सम्यगक्षये) दुर्गा में तो दिन तक रहता है।
भावार्थ-सौम्यागति में बुध तीन पक्ष में पैतालीस दिनों में दिखता है, विमिश्रा गति में दो पक्ष दिखता है संक्षिप्त गति में चौबीस दिन, तीक्ष्णामें दस रात, घोरा में छह दिन पापी का में तीन रात दुर्गा में नौ दिन तक दिखता है।। ३-४ ।।
सौम्याः विमिश्राः संक्षिप्ता बुधस्य गतयोहिताः।
शेषाः पापा: समाख्याता विशेषेणोत्तरोत्तरा।।५॥ (बुधसस्य गतयो) बुध की गति (सौम्या: विमिना संक्षिप्ता) सौम्या विमिश्रा संक्षिप्त गति (हिता) हितकारी हैं (शेषाः पापा: समाख्याना:) शेष सभी गति या पाप गति कहलाती है। (विशेषेणोत्तरोत्तरा:) विशेष रूप से उत्तर की पापगति कहलाती
भावार्थ-बुध की सौम्या संक्षिप्त गति हितकारी होती है.बाकी शेष पाप गति होती है, विशेष रूप से उत्तर की गति पाप कहलाती है।। ५॥
नक्षत्रं शकवाहेन जहाति समचारताम्।
एषोऽपि नियतश्चारो भयं कुर्यादतोऽन्यथा ॥६॥ बुध यदि (समचारताम्) समानरूप से गमन करता हुआ (शक वाहेन) शकवाहक के द्वारा स्वभाव से ही (नक्षत्र) नक्षत्र को (जहाति) त्याग करे तो (एषोऽपिनियतश्चारो) वह बुध का नियत चार कहलाता है (अन्यथा भयं कुर्यादतो) अन्यथा भय उत्पन्न करता है।
भावार्थ-समान रूप से गमन करता हुआ शक वाहन के द्वारा स्वभाव से ही नक्षत्र को छोड़ता है तो वह बुधका नियतचार कहलाता है अन्यथा भय उत्पन्न करता है।।६।।
नक्षत्राणि चरेत्पञ्चपुरस्तादुत्थितो बुधः । ततश्चास्तमितः षष्ठे सप्तमे दृश्यते परः॥७॥