Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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सप्तदशोऽध्यायः
गुरु के अस्त का विचार - मेषमें गुरु अस्त हो तो थोड़ी वर्षा; बिहार, बंगाल, आसाममें सुभिक्ष, राजस्थान, पंजाबमें दुष्काल; वृषमें अस्त हो तो दुर्भिक्ष, दक्षिणभारतमें अच्छी फसल, उत्तर भारतमें खण्ड वृष्टि; मिथुनर्म अस्त हो तो घृत, तेल लवण आदि पदार्थ महँगे, महामारीके कारण सामूहिक मृत्यु, अल्पवृष्टि; कर्क में हो तो सुभिक्ष, कुशल, कल्याण, क्षेम सिंहमें अस्त हो तो युद्ध, संघर्ष, राजनैतिक उलटफेर, धनका नाश; कन्यामें अस्त हो तो क्षेम, सुभिक्ष, आरोग्य, तुलामें पीड़ा द्विजोंको विशेष कष्ट, धान्य महँगा; वृश्चिकमें अस्त हो तो नेत्ररोग, धनहानि, आरोग्य, शस्त्रभय; धनुराशिमें अस्त हो तो भय, आतंक, रोगादि; मकर राशिमें अस्त हो तो उड़द, तिल, मूंग आदि धान्य महँगे; कुम्भमें अस्त हो तो प्रजाको कष्ट, गर्भवती नारियोंको रोग एवं मीन राशिमें अस्त हो तो सुभिक्ष, साधारण वर्षा, धान्य का भाव सस्ता होता है। गुरुका क्रूर ग्रहों के साथ अस्त या उदय होना अशुभ होता है। शुभ ग्रहों के साथ अस्त या उदय होने से गुरु का शुभ फल प्राप्त होता है। गुरु के साथ शनि और मंगलके रहने से प्रायः सभी वस्तुओं की कमी होती है। और भाव भी उनके महँगे होते हैं। जब गुरुके साथ शनि की दृष्टि गुरु पर रहती है, तब वर्षा कम होती है और फसल भी अल्प परिमाण में उपजती है।
इति श्रीपंचम श्रुत केवली दिगम्बराचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी विरचित भद्रबाहु संहिता का गुरु संचार नामा अध्याय का वर्णन करने वाला सतरहवाँ अध्याय का हिन्दी भाषानुवाद करने वाली क्षेमोदय टीका समाप्तः ।
( इति सप्तदशोऽध्यायः समाप्तः )