Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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शनि का फल सभी प्रकारके सुखों की प्राप्ति है। मिथुनके शनि में वर्षा अधिक होती है। कर्कराशिके शान में रोग, तिरस्कार, धन नाश, कार्य में हानि, मनुष्यों में विरोध, प्रशासकों में द्वन्द्व, पशुओं में महामारी एवं देशके पूर्वोत्तर भाग में वर्षाकी भी कमी रहती है। सिंह राशिके शनि में चतुष्पद, हाथी, घोड़े आदिका विनाश, युद्ध, दुर्भिक्ष, रोगों का आतंक, समुद्रके तटवर्ती प्रदेशों में क्लेश, म्लेच्छों में संघर्ष, प्रजाको सन्ताप, धान्यका अभाव एवं नाना प्रकार से जनता को अशान्ति रहती है। कन्याके शनि में काश्मीर देशका नाश, हाथी और घोड़ों में रोग, सोना-चाँदी-रत्नका भाव सस्ता, अन्नकी अच्छी उपज एवं घृतादि पदार्थ भी प्रचुर परिणाम में उत्पन्न होते हैं। तुलाके शनि में धान्यभाव तेज, पृथ्वी में व्याकुलता, पश्चिमीय देशों में क्लेश, मुनियोंको शारीरिक कष्ट, नगर और ग्रामों में रोगोत्पत्ति, वनोंका विनाश, अल्प वर्षा, पवनका प्रकोप, चोर-डाकुओं का अत्यधिक भय एवं धनाभाव होते हैं। तुलाका शनि जनताको कष्ट उत्पन्न करता है, इनमें धान्यकी उत्पत्ति अच्छी नहीं होती। वृश्चिक राशिके शनि में राज कोप, पक्षियों में युद्ध, भूकम्प, मेघों का विनाश, मनुष्यों में कलह, कार्योंका विनाश, शत्रुओंको क्लेश एवं नाना प्रकार की व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं। वृश्चिकके शनि में चेचक, हैजा और क्षय रोग का अधिक प्रसार होता है। कास-श्वास की बीमारी भी वृद्धिगत होती है। धनुराशिके शनि में धन-धान्य की अच्छी उत्पत्ति, समयानुकूल वर्षा, प्रजा में शान्ति, धर्मकी वृद्धि, विद्याका प्रचार, कलाकारोंका सम्मान, देशके कला-कौशलकी उन्नति एवं जनता में प्रसन्नताका प्रसार होता है। प्रजाको सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं, जनता में हर्ष और आनन्द की लहर व्याप्त रहती है। मकरके शनि में सोना, चाँदी, ताँबा, हाथी, घोड़ा, बैल, सूत, कपास आदि पदार्थोंका भाव महँगा होता है। खेतीका भी विनाश होता है, जिससे अन्नकी उपज भी अच्छी नहीं होती है। रोगके कारण प्रजाका विनाश होता है तथा जनता में एक प्रकार की अग्नि का भय व्याप्त रहता है, जिससे अशान्ति दिखलाई पड़ती है। कुम्भ राशिके शनि में धन-धान्य की उत्पत्ति खूब होती है। वर्षा प्रचुर परिमाण में और समयानुकूल होती है। विवाहादि उत्तम मांगलिक कार्य पृथ्वीपर होते रहते हैं, जिससे जनता में हर्ष छाया रहता है। धर्मका प्रचार और प्रसार सर्वत्र होता है, सभी लोग सन्तुष्ट और प्रसन्न दिखलाई पड़ते