Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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५.२५
सप्तदशोऽध्यायः
जाते हैं उत्तराभाद्रपद को घातित होने पर व रेवती के घातित होने पर नाविक व जल जन्तुओं को पीडा होती है ।। ३९ ।।
वामं करोति नक्षत्रं यस्य दीप्तो वृहस्पतिः । लब्ध्वाऽपि सोऽर्थं विपुलं न भुञ्जीत कदाचन ॥ ४० ॥ हिनस्ति बीजं तोयञ्च मृत्युदा भरणी यथा । अपि हस्तगतं द्रव्यं सर्वथैव विनश्यति ।। ४१ ।।
( दीप्तो ) दीप्त (वृहस्पतिः) गुरु (यस्य) जिस पुरुष के ( वामं ) वाम और (नक्षत्र) नक्षत्र को घातित (करोति) करता है (सोविपुलंऽर्थं लब्ध्वाऽपि ) वो बहुत धनको प्राप्त करके भी ( न भुञ्जीत कदाचन् ) उसका उपभोग कभी भी नहीं कर सकता हैं, (यथा) उसी प्रकार ( भरणी) भरणी के घातित होने पर ( हिनस्ति बीजं तोयञ्च ) बीज और पानी का घात करता है ( मृत्युदा ) लोगों को मरण होता है ( सर्वथैवअपि हस्तगतंद्रव्यं) सब प्रकार का धन हाथ में होने पर भी ( विनश्यति) नाश हो जाता है।
भावार्थ --- जिस व्यक्ति के दीप्त बृहस्पति वाँई और नक्षत्र को घातित करे तो बहुत धन को प्राप्त करने पर भी उसका उपभोग नहीं कर सकता, उसी प्रकार भरणी का घात करने पर बीज और पानी का घात करता है लोगों का मरण करता है, सब प्रकार का धन हाथ में होने पर भी वह धन नाश हो जाता है ।। ४०-४१ ।।
प्रदक्षिणं तु नक्षत्र यस्य कुर्यात् यायिनां विजयं विन्द्यात् नागराणां
वृहस्पतिः । पराजयम् ॥ ४२ ॥
(यस्य) जिस व्यक्ति के ( प्रदक्षिणं) प्रदक्षिणा रूप (नक्षत्र) नक्षत्र को घाति । (कुर्यात्) करे (तु) तो (यायिनां विजयं विन्द्यात्) आने वाले की विजय कराता है, और (नागराणां पराजयम्) नगरस्थ की पराजय कराता है।
भावार्थ - जिस व्यक्ति के प्रदक्षिणां रूप नक्षत्र को गुरु घाटित करे तो आने वाले की विजय और नगरस्थ की पराजय होती है ॥ ४२ ॥