Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
५२६
प्रदक्षिणं तु कुर्वीत सोमं यदि बृहस्पतिः।
नागराणां जयं विन्धाद् यानिनां च पराजयम्॥४३॥ यदि (बृहस्पति) गुरु (सोम) चन्द्रमा की (प्रदक्षिणं) प्रदक्षिणा (कुति) करे (तु) तो (नागराणां) नगरस्थ की (जयं) जय (विन्द्याद) जानो (यायिनां च पराजयम्) आने वाले की पराजय समझो।
___ भावार्थ-यदि गरू चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करे तो समझो नगरस्थ राजा की जय होगी, और आने वाले राजा की पराजय होगी॥४३॥
उपघातेन चक्रेण मध्यगन्ता वृहस्पतिः।
निहन्याद् यदि नक्षत्रंयस्य तस्य पराजयम्॥४४॥ (उपघातेन चक्रेण) उपघात चक्र के (मध्यगन्ता) मध्यमें स्थित होकर (वृहस्पतिः) गुरु (यदि) यदि (नक्षत्रं) नक्षत्रको (निहन्याद्) घात करे तो (यस्य तस्य पराजयम्) उसकी पराजय होगी।
भावार्थ—उपघात चक्र के मध्यमें स्थित होकर गुरु यदि जिसके नक्षत्र का घात करे तो उसकी पराजय होगी॥४४॥
बृहस्पतेर्यदा चन्द्रोरूपं सच्छादयेत् भृशम्।
स्थावराणां वथं कुर्यात् पुररोथं च दारुणम्॥४५॥ (बृहस्पतेर्यदा रूपं चन्द्रो) जब गुरु को रूपका चन्द्रमा (सञ्छादयेत् भृशम् आच्छादन करे तो (स्थावराणां वधं कुर्यात्) स्थावरों का वध होता है (पुररोधं च दारुणम्) और नगर का भयंकर अवरोध होता हैं।
भावार्थ-जब गुरु के रूप का चन्द्रमा अच्छादन करे तो स्थावरों का वध होता है और नगर का भयंकर अवरोध होता है याने परशत्रु नगर को घेर लेता है।। ४५॥
स्निग्धप्रसन्नो विमलोऽभिरूपो, महाप्रमाणो द्युतिमान् सपीतः। गुरुयंदाचोत्तरमार्गचारी तदा प्रशस्त: प्रतिबद्धहन्ता॥४६॥