Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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होनेसे सभीको कष्ट उठाना पड़ता है। मकर में शनि का उदय हो तो प्रशासकों में संघर्ष, राजनैतिक उलट-फेर, चौपायोंको कष्ट, तृणकी कमी, वर्षा साधारण रूप में होना एवं लोहेका भाव महँगा होता है। कुम्भ राशि में शनि का उदय हो तो अच्छी वर्षा, साधारणतया धान्यकी उत्पत्ति, व्यापार में लाभ, कृषक और व्यापारीवर्ग में सन्तोष रहता है। देशका आर्थिक विकास होता है। नई-नई योजनाएं बनाई जाती हैं और सभी कार्यरूप में परिणत कराई जाती हैं। मीनराशि में शनि का उदय होना अल्प वर्षा कारक, अल्पधान्यकी उत्पत्तिका सूचक एवं चोर, डाकुओंकी वृद्धिकी सूचना देता है। शनि का कर्क-तुला, मकर और मीन राशियों में उदय होना अधिक खराब है। अन्य राशियों में शनि के उदय होने से अन्नकी उत्पत्ति अच्छी होती है। देशका व्यापार विकसित होता है और देशके साधारण कष्टके सिवा विशेष कष्ट नहीं होता है। रोग-महामारीका प्रसार होता है, जिससे सर्व साधारणको कष्ट होता है।
शनि अस्त का विचार-मेष में शनि अस्त हो तो धान्य का भाव तेज, वर्षा साधारण, जनता में असन्तोष, परस्पर फूट, मुकदमोंकी वृद्धि और व्यापार में लाभ होता है। वृषराशि में शनि अस्त हो तो पशुओं को कष्ट, देशके पशुधन का विनाश, पशुओं में अनेक प्रकारके रोग, मनुष्यों में संक्रामक रोगोंकी वृद्धि एवं धान्यकी उत्पत्ति साधारण होती है। मिथुनराशि में शनि अस्त हो तो जनता को कष्ट, आपसी विद्वेष, धन-धान्य का विनाश, चैत्रके महीने में महामारी एवं प्रजा में अशान्ति रहती है। कर्कराशि में शनि अस्त हो तो कपास, सूत, गुड़, चाँदी, घी अत्यन्त महँगे, वर्षाकी कमी, देश में अशान्ति, तथा नाना प्रकारके धान्यकी महंगाई और कलिंग, बंग, अंग, विदर्भ, विदेह, कामरूप, आसाम आदि प्रदेशों में वर्षा साधारण होती है। कन्याराशि में शनि के अस्त होने से अच्छी वर्षा, मध्यम फसल, अन्न का भाव महंगा, धातु का भाव भी महंगा और चीनी-गुड़की उत्पत्ति मध्यम होती है। तुलाराशि में शनि का उदय हो तो अच्छी वर्षा, उत्तम फसल, जनता में सन्तोष और सभी प्रदेशोंके व्यक्ति सुखी होते हैं। व्यापकरूपसे वर्षा होती है। वृश्चिकराशि में शनि के अस्त होने से अच्छी वर्षा, फसल में रोग, टिड्डी-शलभादि का विशेष प्रकोप, धनकी वृद्धि, जनता में साधारणतया शान्ति और सुख होता