Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
हो तो सबका विनाश करता है। पीला हो तो व्याधियों का भय करता है, और धूम्रवर्ण का हो तो वर्षा लाता है॥३॥
उपसर्पतिमित्रादि पुरतः स्त्री प्रपद्यते।
त्रि-चतुर्भिश्च च नक्षत्रैस्त्रिभिरस्तमनं व्रजेत्॥४॥ जब गुरु (त्रि-चतुर्भिश्च च नक्षत्र) तीन या चार नक्षत्रों में व (स्त्रिभिरस्तमनं व्रजेत्) तीन नक्षत्रों में गमन करता है, या अस्त होता है तो (स्त्री मित्रादिपुरतः) स्त्री, मित्र, पुत्रादि की (उपसर्पति प्रपद्यते) प्राप्ति होती है।
भावार्थ-यदि गुरु तीन नक्षत्र या चार नक्षत्रों पर व तीन ही नक्षत्रों पर गमन या अस्त होता है, तो समझो स्त्री, पुत्र, मित्रादिक की प्राप्ति होती है।।४॥
कृत्तिकादि भगान्तश्च मार्गः स्यादुत्तरः स्मृतः।
अर्यमादिरपाप्यन्तो मध्यमो मार्ग उच्यते ॥५॥ (कृत्तिकादि भगान्तश्च) कृत्तिका नक्षत्रसे लेकर नौ नक्षत्रों तक (मार्ग: स्यादुत्तर: स्मृत:) गुरु का उत्तर मार्ग होता है, (अर्यमादिरपाप्यन्तो) तथा उत्तराफाल्गुनी से नौ नक्षत्रोंका (मध्यमो मार्ग उच्यते) मध्यम मार्ग कहलाता है।
भावार्थ-कृत्तिका नक्षत्र लगाकर पूर्वाफाल्गुनी तक नौ नक्षत्रों का गुरु का उत्तरमार्ग है, उसी प्रकार आगे के हस्तादि नौ नक्षत्रों का मार्ग मध्यम है।।५।।
विश्वादिसमयान्तश्च दक्षिणो मार्ग उच्यते।
एते बृहस्पतेर्मार्गा नव नक्षत्रजास्त्रयः॥६॥ (विश्वादिसमयान्तश्च) उत्तराषाढ़ा से भरणी तक (दक्षिणो मार्ग उच्यते) गुरुका दक्षिण मार्ग होता है (एतेबृहस्पतेर्मार्गा) इतने गुरुके मार्ग (नव नक्षत्रजास्त्रयः) नौ नक्षत्र वाले होते हैं।
भावार्थ-उसी प्रकार गुरुका उत्तराषाढ़ा से भरणी तक नौ नक्षत्र दक्षिण मार्ग है, इस प्रकार गुरु के नौ-नौ मार्ग जानना चाहिये॥६॥
मूलमुत्तरतो याति स्वाति दक्षिणतो व्रजेत् । नक्षत्राणि तु शेषाणि समन्ताद्दक्षिणोत्तरे॥७॥