Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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सप्तदशोऽध्यायः
विशाखा कृत्तिका चैव मघा रेवतिरेव च।
अश्विनी श्रवणश्चैव तथा भाद्रपदा भवेत्॥२०॥ (विशाखा कृत्तिका चैव) विशाखा, कृत्तिका और (मघारेवातिरेव च) मघा, रेवती और (अश्विनी श्रवणश्चैव) अश्विनी, श्रवण (त्या भाद्रपदा भवत) तथा भाद्रपद गमन करता है तो।
भावार्थ-विशाखा, कृत्तिका और मघा, रेवती, अश्विनी, श्रवण उत्तरा, भाद्रपद नक्षत्रोंमें गमन करता है तो, ॥२०॥
बहूदकानि जानीयात् तिष्ययोगसमप्रभे।
फल्गुन्येव च चित्रा च वैश्वदेवश्च मध्यमः॥२१॥ समझो (तिष्ययोगसमप्रभे) गुरु, पुष्य योग के समान ही (बहूदका निजानीयात्) बहुत भारी वर्षा होगी ऐसा जानना चाहिये, और (फल्गुन्येव च चित्रा च) पूर्वा फाल्गुनी और चित्रा और (वैश्वदेवश्च मध्यमः) उत्तराषाढ़ा इन नक्षत्रों में गुरु गमन करे तो मध्यम फल होगा, ऐसा जानना चाहिये।
भावार्थ-गुरु पुष्य के समान ही बहुत भारी वर्षा करता है, ऐसा जानना • चाहिये और पूर्वाफाल्गुनी चित्रा और उत्तराषाढ़ा इन नक्षत्रोंमें गुरु गमन करे तो मध्यम फल होगा ऐसा जानो।। २१॥
ज्येष्ठा मूलं च सौम्यं च जघन्या सोमसम्पदा। कृत्तिका रोहिणी मूर्तिराश्लेषा हृदयं गुरुः ।। २२॥ आप्यं ब्राह्यं च वैश्वं च नाभिः पुष्य मघा स्मृताः।
एतेषु च विरुद्धेषु ध्रुवस्य फलमादिशेत् ।। २३॥ (ज्येष्ठा मूलं च सौम्यं च ज्येष्ठा और मूल और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में गुरु गमन करे तो (सोम सम्पदा जघन्या) सुख सम्पत्ति जघन्य होती है (कृत्तिका रोहिणी मूर्तिः) कृत्तिका रोहिणी मूर्ति (आश्लेषा हृदयं गुरु:) और आश्लेषा गुरु का हृदय है (आप्यं ब्राह्मं च वैश्व च) पूर्वाषाढ़ा अभिजित उत्तराषाढ़ा और पुष्य मघा) पुष्य, मघा नक्षत्र गुरु की (नाभिः स्मृताः) नाभि है ऐसा जानो, (एतेषु च विरुद्धेषु ध्रुवस्य फलमादिशेत्) इस सबमें विपरीत फल का निरूपण करना चाहिये।