Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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गोऽध्यायः
च) कुसुमो का ( हतं) विनाश करता है (आग्नेया) अग्नि ( मूषकाः ) चूहे ( सर्पा ) सर्प (दाघश्च) जलन ( शलभाः) शलभ (शुकाः) शुक का उपद्रव होता है (ईतयश्च ) इति ( महाधान्ये ) धान्यघात ( जाते च बहुधा स्मृता) आदि बहुत प्रकार का उपद्रव उत्पन्न होता है ( स्वचक्र मीतयश्चैव ) स्व चक्र में मित्रता और ( परचक्रं निरम्बु च ) पर शासन में जलाभाव होगा ।
भावार्थ – पुष्य नक्षत्र का घात होने पर पुष्प, फल, कुसुम आदि का विनाश होता है। अग्नि, चूहे, सर्प, जलन, शलभ, शुक उपद्रव होता है। अर्थात् महामारी, धान्यघात अपने राज्यमें मित्रता होती है, परराज्य में जल का अभाव होता है । २६-२७ ॥
अत्यम्बु च विशाखायां सोमे सम्वत्सरे शेषं संवत्सरे ज्ञेयं शारदं तत्र
विदुः । नेतरम् ॥ २८ ॥
अगहया (सोमे) सौम्य नामक (सम्वत्सरे) संवत्सर में जब (विशाखायां ) विशाखा नक्षत्र पर बृहस्पति गमन करता है तो ( अत्यम्बु च ) बहुत जल वृष्टि होती है ( शेषं संवत्सरे ज्ञेयं) शेष संवत्सरों में केवल पौष तक जल वृष्टि होती है ( शेषं संवत्सरे ज्ञेयं) शेष संवत्सरों में केवल पौष ( शारदं तत्र नेतरम् ) संवत्सर में ही अल्प जल की वर्षा समझनी चाहिये ।
भावार्थ — सौम्य नामक संवत्सर में जब विशाखा नक्षत्र पर गुरु गमन करता है तो बहुत जल की वर्षा होती है, शेष संवत्सरों में केवल पौष संवत्सरमें ही थोड़े जलकी वर्षा होती है ऐसा समझना चाहिये ॥ २८ ॥
माघमल्पोदकं विन्द्यात् फाल्गुने दुर्भगाः स्त्रियः ।
चैत्रं चित्रं विजानीयात् सस्यं तोयं सरीसृपाः ॥ २९ ॥
( माघमल्पोदकं विन्द्यात्) माघ नाम के वर्ष में थोड़ी वर्षा होती है (फाल्गुने दुर्भगा: स्त्रियः) फाल्गुन मासमें स्त्रियों के दुर्भाग्य की वृद्धि होती है (चैत्रं चित्रं ) चैत्र नामके वर्ष में ( सस्यं तोयं सरीसृपाः ) धान्य, पानी और सरीसृप की वृद्धि (विजानीयात् ) जानना चाहिये ।
भावार्थ —–माघ नामक वर्ष में थोड़ी वर्षा होती है, फाल्गुन नामक वर्ष में स्त्रियों के दुर्भाग्य की वृद्धि होती है चैत्र में धान्य, पानी और सरीसृप की वृद्धि होती है ।। २९ ।।