Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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षोडशोऽध्यायः
यदा वा युगपद् युक्तः सौरिमध्येन नागरः।
तदा भेदं विजानीयानागराणां परस्परम् ॥२०॥ (यदा) जब (वा) वा (सौरिमध्येन) सौरि के मध्यमें (युगपद् युक्तः) चन्द्रमा और शनि दोनों एक साथ हो तो (नागरः) नगर (तदा) तब (नागराणां परस्परम् भेदं) नागरिकों में परस्पर भेद होता है।
भावार्थ-जब चन्द्रमा और शनि एक हो तो नागरिकों में परस्पर भेद पड़ता है॥२०॥
महात्मानश्च ये सन्तो महायोगापरिग्रहाः।
उपसर्ग च गच्छन्ति धन-धान्यं च वध्यते॥२१॥ (महात्मानश्च ये सन्तो) महात्मा मुनि और साधु (महायोगापरिग्रहाः) महायोग को धारण करने वाले अपरिग्रही होते है, (उपसर्ग च गच्छन्ति) उपसर्ग को प्राप्त होते हैं (धन-धान्यं च वध्यते) धन और धान्यों का घात होता है।
भावार्थ-महात्मा, मुनि, महायोग को धारण करने वाले साधु अपरिग्रही होते हैं उपसर्ग को प्राप्त करते हैं धन और धान्य का घात होता है॥२१॥
देशा महान्तो योधाश्च तथा नगरवासिनः।
ते सर्वत्रोपतप्यन्ते बेधे सौरस्य तादृशे॥२२॥ (सौरस्य तादृशे बेधे) शनि के उसी प्रकार से बेधित होने पर (देशा) देश (महान्तो योधाश्च) बड़े-बड़े योद्धा (तथा) तथा (नगरवासिनः) नरकवासी (ते सर्व त्रोपतप्यन्ते) वे सब ही सन्तप्त होते हैं।
भावार्थ-शनि के उसी प्रकार बोधित होने पर देश और बड़े-बड़े योद्धा तथा नगर निवासी सब ही सन्तप्त होते हैं।। २२॥
ब्राह्मी सौम्या प्रतीची च वायव्या च दिशो यदा।
वाहिनी यो जयेत्तासु नृपो दैवहतस्तदा ॥२३॥ (यदा) जब (ब्राही सौम्या प्रतीची च) पूर्व, उत्तर और पश्चिम (वायव्या) वायव्य (दिशो) दिशा की (वाहिनीं) सेना को (यो जयेत्तासु) जो जीतता है (नृपो दैव हतस्तदा) ऐसा राजा भी समझो दैव के द्वारा ठगा गया हैं।