Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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षोडशोऽध्यायः
आने वाले आक्रमणकारी के (भटागणा च पीड्यन्ते) योद्धा पीड़ा को प्राप्त होते
हैं।
भावार्थ-जब शनि दक्षिण दिशा में नीले वर्ण का होकर दिखे तो समझो नगरस्थ व आने वाले शुत्र के योद्धा दोनों ही पीड़ा को प्राप्त होते हैं।। १३ ॥
गोपालं वर्जयेत् तत्र दुर्गाणि च समाश्रयेत्।
कारयेत् सर्वशस्त्राणि बीजानि च न वापयेत्॥१४॥ उक्त प्रकार के शनि में (गोपालं वर्जयेत् तत्र) वहाँ गोपुर नगर को छोड़कर (दुर्गाणि च समाश्रयेत्) दुर्ग का आश्रय लेना चाहिये, (कारयेत् सर्वशस्त्राणि) सर्व शस्त्रों को तैयार करना चाहिये, (बीजानि च न वापयेत्) वहाँ पर बीजों का वपन नहीं करना चाहिये।
भावार्थ- उपर्युक्त शनि में गोपुर छोड़कर किसी सुरक्षित दुर्ग का आश्रय लेना चाहिये, अपने-अपने सर्व शस्त्रों की तैयारी करनी चाहिये, क्योंकि वहाँ पर कभी भी युद्ध हो सकता है, और बीजों का वपन नहीं करना चाहिये ।। १४ ।।
प्रदक्षिणं तु ऋक्षस्य यस्य याति शनैश्चरः।
स च राजा विवर्धेत सुभिक्ष क्षेममेव च ॥१५॥ (शनैश्चर:) शनि (यस्य) जिस (ऋक्षस्य) नक्षत्रकी (प्रदक्षिणं याति) प्रदक्षिणा लगाता है (स च राजाविवर्धेत) वहाँ का राजा वृद्धि को प्राप्त होता है। (सुभिक्षं क्षेममेव च) और वहाँ सुभिक्ष होगा, क्षेम होगा।
भावार्थ-शनि जिस नक्षत्र को प्रदक्षिणा लगाता है, उस प्रदेश के राजा की वृद्धि होती है, और वहाँ पर सुभिक्ष होता है, क्षेम कुशल होता है।। १५॥
अपसव्यं नक्षत्रस्य यस्य याति शनैश्चरः।
स च राजा विपद्येत दुर्भिक्षं भयमेव च ॥१६॥ (शनैश्चर:) शनि (यस्य) जिस (नक्षत्रस्य) नक्षत्र के (अपसव्यं याति) दाहिनी ओर गमन करता है (स च राजा विपद्येत) वहाँ का राजा विपदामें पड़ता है, (दुर्भिक्षं भयमेव च) वहाँ पर दुर्भिक्ष और भय उत्पन्न होता है।
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