Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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षोडशोऽध्यायः
है (मर्यादा च विनश्यति) सन मर्यादा नष्ट हो जाती है (वृष्टिश्च विषमा ज्ञेया) विषम वर्षा होती है (व्याधिकोपश्च जायते) व्याधियों उत्पन्न होती है, कोप उत्पन्न होता है।
भावार्थ-उपर्युक्त शनि के होने पर दुर्ग में निवास करना पड़ता है सब मर्यादा नष्ट हो जाती है, विषम वर्षा होती है व्याधियाँ और कोप उत्पन्न होता है॥७॥
यदा तु त्रीणि चत्वारि नक्षत्राणि शनैश्चरः ।
मन्दवृष्टिं च दुर्भिक्षं शस्त्रं व्याधि च निर्दिशेत्॥८॥ (यदा तु शनैश्चरः) जब शनि एक वर्ष में (त्रीणि चत्वारि नक्षत्राणि) तीन या चार नक्षत्र प्रमाण गमन करता है तो (मन्दवृष्टिं च) वर्षा मन्द होगी, और (दुर्भिक्षं) दुर्भिक्ष होगा, (शस्त्र) शस्त्र भय होगा, (व्याधिं च निर्दिशेत्) और व्याधियों उत्पन्न होगी ऐसा निर्देशन किया है।
भावार्थ-जब शनि एक वर्ष में तीन या चार नक्षत्र प्रमाण गमन करता है, तब थोड़ी वर्षा होगी, दुर्भिक्ष होगा, शस्त्र भय होगा, व्याधियाँ उत्पन्न होगी, ऐसा निर्देशन किया गया है।॥८॥
चत्वारि वा यदा गच्छेन्नक्षत्राणि महाधुतिः।
तदा युगान्तं जानीयात् यान्ति मृत्युमुखं प्रजाः॥९॥ (महाद्युतिः) यदि शनि (चत्वारि वा यदा गच्छेन्नक्षत्राणि) जब एक वर्ष में चार नक्षत्रों पर गमन करता है तो (तदा) तब (युगान्तं जानीयात्) युगान्त जानना चाहिये। (यान्ति मृत्युमुखं प्रजा) और प्रजा मृत्यु के मुख में जानना चाहिये।
भावार्थ-यदि शनि जब एक वर्ष में चार नक्षत्र तक गमन करता है, तो तब समझो इस युग का अन्त आने वाला है और प्रजा मृत्यु के मुखमें जाने वाली है ऐसा समझना चाहिये।।९।।
उत्तरे पतितो मार्गे यद्येषो नौलतां सजेत्।
स्निग्धं तदा फलं ज्ञेयं नागरं जायते तदा॥१०॥ (उत्तरे पतितो मार्गे) उत्तर मार्ग में गमन करता हुआ शनि (यद्येषो नीलतां