Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-शनि जिस नक्षत्र के दाहिनी और गमन करता है, तो वहाँ के राजा पर बहुत बड़ी भारी विपदा आती है, वहीं दुर्भिक्ष पड़ता है भय उत्पन्न होता है।।१६॥
चन्द्रः सौरिं यदा प्राप्तः परिवेषेण रुन्द्धति।
अवरोधं विजानीयानगरस्य महीपतेः ॥१७॥ (यदा) जब (चन्द्रः सौरि) चन्द्रमा शनि को (प्राप्त:) प्राप्त कर (परिवेषण रूद्धति) परिवेष से रुद्ध हो तो (नगरस्य महीपतेः) नगर के राजा का (अवरोधं विजानीयात्) अवरोध होता है।
भावार्थ-जब चन्द्रमा शनि को प्राप्त कर परिवेष से रुद्ध होता है, तो समझो नगर के राजा का अवरोध होगा, ऐसा जानो॥१७॥
चन्द्रः शनैश्चरं प्राप्तो मण्डलं वाऽनुरोहति।
यवनां सराष्ट्रां सौवीरां वारुणं भजते दिशम्॥१८॥ (चन्द्रः शनैश्चरं प्राप्तो) जब चन्द्र शनि को प्राप्त कर (मण्डलं वानुरोहति) मण्डल पर आरोहण करे तो (यवनां) यवन लोग, (सराष्ट्रां) सौराष्ट्र (सौवीरां) सौवीर (वारुणं) और उत्तर दिशा को (भजते दिशम्) प्राप्त होते हैं।
भावार्थ-जब चन्द्रमा शनि को प्राप्त कर मण्डल से अवरोहण करता है, तो यवन, लोग सौराष्ट्र, सौवीर और उत्तर प्रदेश में फैल जाते हैं।॥ १८॥
आनाः सौरसेनाश्च दशार्णा द्वारिकास्तथा।
आवन्त्या अपरान्ताश्च यायिनश्च तदा नृपाः॥१९॥ उपर्युक्त शनि में (आनर्ताः सौरसेनाश्च) आनर्त, सौरसेन, (दशार्णा द्वारिकास्तथा) और दशार्ण तथा द्वारिका (आवन्त्या) आवन्ति (अपरान्ताश्च) और आपरान्तक (तदा) तंब (यायिनश्च नृपाः) आने वाले राजा लोग इन देशों के ऊपर आक्रमण करते हैं।
भावार्थ-उपर्युक्त शनि में आनर्त, सौरसेन, दशार्ण, द्वारिका तथा आवन्ति व अन्य देशों के ऊपर आने वाला राजा आक्रमण करता है।।१९॥