Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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गोवीथिं चतुर्दश
पञ्चदशोऽध्यायः
कुरुते श्येत
समनुप्राप्तः प्रवासं दशाहानि
गत्वा
शुक्र (गोवीथिं समनुप्राप्तः ) गोबीधि को प्राप्त कर अस्त होता है ( प्रवासं कुरुते यदा) पुनः वह उदय हो तो ( चतुर्दशदशाहानि ) चौदह दिनों में (गत्वा) जाकर ( पूर्वतः दृश्येत ) पूर्व में उदय होगा ।
भावार्थ --- यदि शुक्र गोवीथि में अस्त हो तो वह शुक्र वापस चौदह दिनों में जाकर पूर्व में उदय होगा ॥ २१९ ॥
कुरुते दृश्येत
यदा ।
पूर्वतः ॥ २९९ ॥
वृषविधिमनुप्राप्तः
प्रवासं तदा द्वादश रात्रेण गत्वा
( यदा) जल शुक्र (नृपनीशिमनुप्राप्तः ) नृषवीथि को प्राप्त कर अस्त होता है पुनः वह ( प्रवासं कुरुते ) प्रवास करे तो ( तदा) तब ( द्वादशरात्रेण ) बाहर रात्रियों के पश्चात् (गत्वा) जाकर (पूर्वतः दृश्येत) पूर्व में दिखेगा ।
भावार्थ--जब शुक्र वृषवीथि में अस्त हो तो पुनः वह बारह रात्रियों में जाकर पूर्व में उदय होगा ।। २२० ।।
प्राप्त:
ऐरावणपथं प्रवासं तदा स दशरात्रेण पूर्वतः
( यदा) जब शुक्र (ऐरावणपथं प्राप्तः ) ऐरावण पथ को प्राप्त कर अस्त होता है तो ( प्रवासं कुरुते ) पुनः वह प्रवास करे तो (तदा) तब ( स ) वह (दशरात्रेण) दसरात्र में जाकर (पूर्वतः ) पूर्व में (प्रतिदृश्यते) प्रवास करेगा।
कुरुते
यदा ।
पूर्वतः ॥ २२० ॥
यदा ।
प्रतिदृश्यते ।। २२१ ।
भावार्थ — जब शुक्र ऐरावणवीथि को प्राप्त कर अस्त होता है तो फिर वह वापस दस रात्रियों के पश्चात् पूर्व में जाकर उदय होगा ।। २२१ ।।
कुरुते
गजवीथिमनुप्राप्तः प्रवासं अष्टरात्रं तदागत्या पूर्वतः
( यदा) जब शुक्र ( गजवीथिमनु प्राप्तः ) गजवीथि को प्राप्त कर अस्त होता है तो ( तदा) तब ( अष्टरात्रं) आठ रात्रि में (गत्ना) जाकर पुन: (पूर्वतः ) पूर्व में ( प्रतिदृश्यते ) उदय होगा ।
यदा ।
प्रतिदृश्यते ॥ २२२ ॥