Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ — जब शुक्र गजवीथि में जाकर अस्त होता है, तो पुनः वह आठ रात्रि में जाकर वापस पूर्व में उदय होगा ।। २२२ ॥
नागवीथिमनुप्राप्तः
प्रवासं कुरुते
यदा ।
षडहं तु तदा गत्वा पूर्वतः प्रतिदृश्यते ॥ २२३ ॥
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( यदा) जब शुक्र ( नागवीथिमनुप्राप्तः) नागवीथि को प्राप्त कर अस्त होता है तो ( प्रवास कुरुते ) पुन: वह वापस प्रवास करेगा ( षडहं तु तदा गत्वा) तो छह दिनों में जाकर (पूर्वतः प्रतिदृश्यते) पूर्व में उदय होता है।
भावार्थ — जब शुक्र नागवीधि में जाकर अस्त होता है, तो वह फिर छह दिनों में जाकर पूर्व में दिखता है ।। २२३ ।।
एते
प्रवासाः शुक्रस्य पूर्वतः यथा शास्त्रं समुद्दिष्टा वर्ण पाकौ
( एते प्रवासाः शुक्रस्य) जो ये शुक्र के प्रवास ( पूर्वतः पृष्ठतस्तथा) पूर्व और पृष्ठ से ( यथा शास्त्रं समुद्दिष्टा) जैसा शास्त्र में कहा गया है (वर्ण पाकौ निबोधत) इसके वर्ण का फल निम्न प्रकार जानना चाहिये ।
पृष्ठतस्तथा । निबोधत ॥ २२४ ॥
भावार्थ — जो ये शुक्र के प्रवास पूर्व और पृष्ठ के जैसा शास्त्र में कहा गया है, इसके अनुसार ही वर्ण का फल निम्न प्रकार जानना चाहिये ॥ २२४ ॥
शुक्रो नीलश्च कपिलाश्चाग्निवर्णश्च
(शुक्रो ) शुक्र के (नीलश्च कृष्णश्च ) नीले, काले, और ( पीतश्च हरितस्तथा ) पीले तथा हरे और (कपिलश्चाग्नि वर्णश्च) कपिल वर्ण इस प्रकार और भी ( कदाचनस्यात् विज्ञेयः ) कई रंग होते हैं।
भावार्थ- शुक्र के काले, पीले, हरे, नीले, कपिल वर्णादिक होते हैं ॥ २२५ ॥
कृष्णश्च पीतश्च हरितस्तथा ।
विज्ञेयः स्यात् कदाचन ।। २२५ ॥
हेमन्ते शिशिरे रक्त: शुक्रः सूर्यप्रभानुगः । पीतो वसन्त - ग्रीष्मे च शुक्लः स्यान्नित्यसूर्यतः ॥ २२६ ॥
( हेमन्ते शिशिरे रक्त) हेमन्त ऋतु में और शिशिर ऋतु में (शुक्रः) शुक्र