Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
पुन: प्रवास करे तो ( चतुर्विंशत्तदाऽहानि ) चौबीस दिनों में (गत्वा) जाकर (पूर्वतः दृश्येत) पूर्व की ओर दिखाई पड़ेगा ।
भावार्थ-यदि शुक्र वैश्वानर में जाकर अस्त होता है, तो वह पुन: चौबीस दिनों में जाकर पूर्वकी ओर दिखलाई पड़ेगा ॥ २१५ ॥
मृगवीथिमनुप्राप्तः प्रवासं कुरुते द्वाविंशतिं तदाsहानि गत्वा दृश्येत
( मृगवीथमनुप्राप्तः ) शुक्र मृगवीथि में जाकर अस्त होता है तो पुनः वह ( प्रवासं कुरुते ) प्रवास करे तो (द्वाविंशतिं तदाऽहानि) बाईसवें दिन में (गत्वा) जाकर
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प्रवासं
( पूर्वतः दृश्येत) पूर्व में दिखेगा।
भावार्थ -- यदि मृगवीधि में शुक्र अस्त हो तो पुनः वह शुक्र बाईसवें दिन में पूर्व में दिखेगा ॥ २१६ ॥
अजवीथिमनुप्राप्तः तदा विंशतिरात्रेण
पूर्वतः
(अजवीथिमनुप्राप्तः) अजवीथि में शुक्र पुनः प्राप्त कर अस्त हो तो ( प्रवासं कुरुते यदा पुनः उसका प्रवास ( तदाविंशतिरात्रेण ) तब बीस रात्रि तक (पूर्वतः प्रतिदृश्येत) पूर्व में दिखेगा ।
भावार्थ —— यदि शुक्र अजवीधि में अस्त होकर पुनः उसका उदय हो तो बीस दिन में पूर्व में होगा ॥ २१७ ।।
जरद्गवपथं
सप्तदशाहानि
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कुरुते
थदा ।
पूर्वतः ।। २१६ ।।
कुरुते दृश्येत
यदा ।
प्रतिद्दश्यते ॥ २९७ ॥
प्राप्तः प्रवास
तदा
गत्वा
शुक्र जब ( जरद्गवपथं प्राप्तः ) जरद्गववीथि को प्राप्त कर अस्त होता है, तो पुनः ( प्रवासं कुरुते यदा) वह प्रवास करेगा ( तदा) तब ( सप्तदशाहानि ) सत्रह दिनों में (गत्वा) जाकर (दृश्येत पूर्वतः ) पूर्व में दिखेगा !
भावार्थ — यदि शुक्र जरद्गववीथि में अस्त होता है तो वह वापस सत्रह दिनों में पूर्व दिशाकी ओर दिखेगा ।। २१८ ॥
यदा ।
पूर्वतः ॥ २९८ ॥