Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पम्बदमोऽध्यायः
ऐरावणपथं प्राप्त प्रवासं कुरुते यदा।
षष्टिं तु स तदाऽहानि गत्वा श्येत पृष्ठतः ॥२१२॥ (ऐरावणपथं प्राप्त) शुक्र ऐरावणवीथि में अस्त होता है तो (प्रवासं कुरुते यदा) पुनः उसका प्रवास (षष्ठिं तु स तदाऽहानि) साठ दिनों में (गत्वा) जाकर (दृश्येत पृष्ठतः) पीछे से दिखाई पड़ता है।
भावार्थयदि शुक्र ऐरावण में अस्त होता है तो पुन: वह साठ दिनों में जाकर पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है।। २१२॥
गजवीथिमनुप्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा।
पञ्चाशीति तदाऽहानि गत्वा श्येत पृष्ठतः।।२१३॥ (गजवीथिमनुप्राप्त:) शुक्र गजवीथि में अस्त होकर (प्रवासं कुरुते यदा) पुनः दिखलाई पड़े तो (पञ्चाशीति तदाऽहानि) पिच्यासी दिनों में (गत्वा) जाकर पुन: (पृष्ठत: दृश्येत) पीछे की ओर दिखाई पड़ता है।
भावार्थ-यदि शुक्र गजवीथि में अस्त होकर पुन: दिखे तो समझो वह पिच्यासी दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखाई पड़ेगा॥२१३ ।।
नागवीथिमनुप्राप्त: प्रवासं कुरुते यदा।
पञ्चपञ्चाशप्तदाऽहानि गत्वा श्येत पृष्ठतः ।। २१४।। (नागवीथिमनुप्राप्तः) शुक्र नागवीथि को प्राप्त कर अस्त होता है तो (प्रवास कुरुते यदा) पुन: वह शुक्र (पञ्चपञ्चाशत्तदाऽहानि) पचप्पन दिनों में (गत्वा) जाकर (पृष्ठत: दृश्येत) पीछे से दिखेगा।
भावार्थ-नागवीथि में अस्त होने वाला शुक्र पुनः दिखे तो पचप्पन दिनों में जाकर पीछे की ओर दिखेगा॥ २१४॥
वैश्वानरपथं प्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा।
चतुर्विशत्तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पूर्वतः ॥ २१५॥ (वैश्वानरपथं प्राप्तः) शुक्र वैश्वानर वीथि में अस्त होकर (प्रवासं कुरुते यदा)