Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता ।
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(अजवीथिमनुप्राप्तः) अजवीथि को शुक्र प्राप्त कर अस्त होता है तो (प्रवासं यदि गच्छति) प्रवास को प्राप्त होता है तो पुन: (अशीतिं षडहानि तु गत्वा) छियासी दिनों के पश्चात् (पृष्ठतः दृश्येत) पीछे से दिखलाई पड़ता है।
भावार्थ-यदि शुक्र अजवीथि को प्राप्त कर अस्त होता है, तो वही शुक्र पुन: छियासी दिनों के पश्चात् पीछे की और दिखलाई पड़ेगा॥२०८॥
जरद्गवपथप्राप्तः प्रवासं यदि गच्छति।
संप्ततिं पञ्च वाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः॥२०९॥ उसी प्रकार शुक्र (जरद्गवपथप्राप्त:) जरद्गववीथि में गमनकर (प्रवासं यदि गच्छति) अस्त होता हुआ पुनः दिखता है तो (सप्ततिं पञ्च वाऽहानि) पिचहत्तर दिनों में (गत्वा) जाकर (पृष्ठतः दृश्येत) पीछे की ओर दिखलाई पड़ेगा।
भावार्थ-यदि शुक्र जरद्गववीथि में अस्त होकर पुनः दिखे तो पिचहत्तर दिनों में जाकर पीछे की ओर दिखलाई पड़ेगा !! २०१".
गोवीथिं समनुप्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा।
सप्ततिं तु तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः।। २१०॥ (गोवीथि समनुप्राप्तः) शुक्र गोवीथि में जाकर (प्रवासं कुरुते यदा) जब पुनः प्रवास करे तो (सप्ततिं तु तदाऽहानि गत्वा) सत्तर दिनों में जाकर (पृष्ठत: दृश्येत) पीछे की ओर दिखेगा।
भावार्थ-शुक्र यदि गोवीथि में जाकर अस्त होता है तो पुन: वह सत्तर दिनों में जाकर पीछे की ओर दिखाई पड़ेगा ।। २१०॥
वृषवीथिमनुप्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा।
पञ्चषष्टिं तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः॥२११॥ (वृषवीथिमनुप्राप्तः) शुक्र यदि वृषवीथि को प्राप्त कर (प्रवासं कुरुते यदा) पुन: प्रवास करता है तो (पञ्चषष्टिं तदाऽहानि) पैंषठ दिनों में (गत्वा) जाकर (पृष्ठतः दृश्येत) पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है।
भावार्थ-वृषवीथि में गमन कर अस्त होने वाला शुक्र पुन: दिखे तो पैंषठ दिनों में जाकर पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है। २११॥