Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-तब धर्म, अर्थ, काम का लोप कर सभी जन वर्ण संकर हो जाते है और महापुरुषों का शस्त्र से घात होता है।। २०१॥
मित्राणि स्वजनाः पुत्रा गुरुद्वेष्या जनास्तथा।
जहति प्राण वर्णाश्च कुरुते ताशेन यत्॥२०२॥ (तादृशेन यत्) शुक्र के अतिचार में (मित्राणि स्वजनाः पुत्रा) मित्र, स्वजन, पुत्र (गुरुद्वेष्या जनास्तथा) तथा गुरु द्वेष जन करने लग जाते हैं (जहतिप्राणवर्णाश्च कुरुते) लोग प्राण छोड़ देते हैं।
भावार्थ-शुक्र के अतिचारी होने पर मित्र, पुत्र, स्वजन, गुरु आदि का परस्पर द्वेष करने लगते हैं लोग धर्म, जाति की मर्यादा को छोड़ते हुए प्राण तक का त्याग कर देते हैं।। २०२॥
विलीयन्ते च राष्ट्राणि दुर्भिक्षेण भयेन च।
चक्रं प्रवर्तते दुर्ग भार्गवस्याति चारतः ॥ २०३॥ (भार्गवस्याति चारत:) शुक्र के अतिचार में (दुर्भिक्षेण भयेन च) दुर्भिक्ष के भय से राष्ट्र दुःखी होते हैं और (चक्र प्रवर्तते दुर्ग) दुर्गं पर शासन के अधीन हो जाता है।
भावार्थ-शुक्र के अतिचार में राष्ट्र भय से विलीन हो जाता है और परचक्र के अधीन दुर्ग हो जाता हैं।। २०३।।
ततः श्मशान भूतास्थि कृष्ण भूता महीतदा।
वसा रुधिरसंकुला काक गृध्र समाकुला॥२०४॥ उपर्युक्त के अतिचारित होने से (तत:) उस जगह (श्मशान भूतास्थि) श्मशान भूतों से भर जाता है (कृष्ण भूतामही तदा) पृथ्वी काली-काली हो जाती है (वसा रुधिरसङ्कला) चर्बी, रक्त युक्त होने से (काकगृध्र समाकुला) कौआ, गीध आदि उड़ने लगते हैं।
भावार्थ-शुक्र के अतिचारित होने से श्मशान भूतों से भर जाता है, पृथ्वी श्मशान की राख से काली-काली हो जाती है, चर्बी, रक्त से युक्त होने से कौवे गीध आदि मासभक्षी पक्षी आकाश में उड़ने लगते हैं।। २०४॥