Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पन्चदशोऽध्यायः
धन, सम्पत्ति आदि सभी का फल शुक्र निर्देशन करता है।
शुक्र का संचार नक्षत्रों के अनुसार होता है किस नक्षत्र पर शुक्र अस्त होता है यह उदय होता है उसका क्या फल होगा है इन सब बातों का वर्णन इस अध्याय में मिलता है।
नक्षत्र सत्ताइस होते हैं, इन नक्षत्रों में शुक्र अस्त हो तो, विशेष फल होता है, उसी का एक उदाहरण देता हूँ।
जैसे शुक्र का अश्विनी, मृगशिर, रेवती, हस्त, पुष्य, पुनर्वसु, अनुराधा, श्रवण, स्वाति, नक्षत्रों उदय हो तो सिन्धु, गुर्जर, कर्वट, प्रदेशों में खेती का नाश, महामारी एवं राजनैतिक संघर्ष होता है राजनैतिक लोगों के लिये ठीक नहीं है।
इस प्रकार उपर्युक्त नक्षत्रों में चांदे शुक्रास्त होता है, तो इटली, रोम, जापान में भूकम्प का भय, बर्मा, श्याम, चीन, अमेरिका में सुख और शान्ति, रूस व भारत में साधारण शान्ति रहती है। देश के अन्तर्गत कोंकण, लाट और सिन्धु प्रदेश में थोड़ी वर्षा होती है, थोड़ी धान्योत्पत्ति होती है, उत्तरप्रदेश में अत्यन्त वर्षा होती है अकाल, द्रविड प्रदेश में विग्रह गुर्जर प्रदेश में सुभिक्ष, बंगाल में अकाल बिहार और आसाम में साधारण वर्षा मध्यम खेती होती है। शुक्रास्त हो जाता है। घी, तेल, जूट आदि पदार्थ सस्ते होते हैं, प्रजा को सुख की प्राप्ति होती है, सर्व प्रजा शान्ति की सांस लेती है।
शुक्र के गमन करने के लिये नौ विथि होती है। नाग, गज, ऐरावण, वृषभ, गो, जरद्रव, मृग, अज और वैश्वानर।
प्रत्येक वीथि के तीन नक्षत्र होते हैं, इन वीथीयों के अनुसार ही नक्षत्रों में शुक्र अस्त या उदय होता है और उसी के अनुसार ही शुभाशुभ का फल होता है, निमित्त ज्ञानी को सब प्रकार का ज्ञान रखना चाहिये, शुक्र का अस्त उदय कौन-सी वीथी के कौन-से नक्षत्र पर हुआ और वह क्या फल देगा, यह जानकर ही उसका फल कहे, ग्रहों के संचार का ज्ञान बहुत कार्य करता है। मैं ज्यादा नहीं लिखकर डॉक्टर साहब का अभिप्राय देता हूँ।
विवेचन-शुक्रोदय विचार-शुक्र का अश्विनी, मृगशिर, रेवती, हस्त, पुष्य, पुनर्वसु, अनुराधा, श्रवण और स्वाति नक्षत्र में उदय होनेसे सिन्धु, गुर्जर,