Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्थोऽध्यायः ।
सफेद न होकर किञ्चित सफेद हो तो (महामेधस्तदा) तब महामेधों का आगमन (भवेत्) होता है।
भावार्थ-यदि चन्द्रमा के ऊपर घी या तेल के वर्ण का परिवेष हो और किञ्चित सफेद हो गहरा सफेद न हो तो समझो महामेघों का आगमन होकर बहुत वर्षा होगी।।६।।
रूप्यपाराताभश्च परिवेषो यदा भवेत् ।
महामेघास्तदा भीक्ष्णं तर्पयन्ति जलैर्महीम्॥७॥ (रूप्य) चाँदीके समान और कबूतर के समान चन्द्रमा के ऊपर (परिवेषो) परिवेष (यदा) जब (भवेत) होता है तो (महामेघाः) महामेघोंका (तदा) तब (भीक्ष्णं) भीषण (जलै) जलकी वर्षासे (महीम्) पृथ्वी को (तर्पयन्ति) तृप्त करता है।
भावार्थ-यदि चन्द्रमा के ऊपर चाँदी व कबूतर के रंग के समान परिवेष हो तो समझो महामेघों का आगमन होकर इस पृथ्वी को तृप्त कर देंगे, याने घोर वषा की सूचना देते है यह परिव५।७i
इन्द्रायुध सवर्णस्तु परिवेषो यदा भवेत्।
सङ्ग्रामं तत्र जानीयाद् वर्ष चापि जलागमम्॥८॥ (इन्द्रायुध) इन्द्र धनुष के (सवर्णस्तु) समान रंग वाला चन्द्रमाके ऊपर (परिवेषो) परिवेष (यदा) जब (भवेत्) होता है तो (तत्र) वहाँ पर (सङ्ग्राम) युद्ध (चापि) और भी (जलागमम्) वर्षाका आगमन (जानीयाद्) जानना चाहिये।
भावार्थ-यदि चन्द्रमा के ऊपर इन्द्र धनुष के रंग का परिवेष हो तो समझना चाहिये वहाँ पर युद्ध भी होगा और वर्षा भी होगी॥८॥
कृष्णे नीले ध्रुवं वर्ष पीते तु व्याधिमादिशेत्।
रूक्षे भस्मनिभे चापि दुर्वृष्टिभयमादिशेत्॥९॥ (कृष्णे) काले, (नीले) नीले वर्णका चन्द्रमा के ऊपर परिवेष हो तो (ध्रुवं) निश्चये (वर्ष) वर्षा होती है (पीते तु) पीला हो तो (व्याधिमादिशेड्) व्याधिको उत्पन्न करता है (चापि) और भी (रूक्षे) रूक्ष (भस्मनिभे) भस्म के रंग की हो तो (दुर्वृष्टि) दुर्वृष्टि (भयं) का भय (आदिशेत्) उत्पन्न होता है।
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