Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
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करई शोणितं मांसं विद्युतश्च भयं वदेत्।
दुर्भिक्षं जनमारि च शीघ्रमाख्यान्त्युपस्थितम्॥१०३॥ (कर) अस्थि (शोणितं) रक्त (मासं) मांस (विद्युतश्च) और बिजली का उत्पात हो तो (भयं वदेत्) भय होगा, ऐसा कहना चाहिये, (उपस्थितम्) जहाँ पर ये उत्पात दिखे समझो वहाँ पर (दुर्भिक्षं) दुर्भिक्ष (च) और (जनमारि) जनो में भारी रोग (शीघ्रमाख्यान्त्य) शीघ्र उपस्थित होगा।
भावार्थ-अस्थि या रक्त, मांस और बिजली का उत्पात दिखना भय का कारण है, जहाँ पर भी ये उत्पात होते है वहाँ दुर्भिक्ष, लोगों में भारी रोग का फैलना आदि सब होता है।। १०३ ।।
शब्देन महता भूमिर्यदा रसति कम्पते।
सेनापतिरमात्यश्च राजा राष्ट्रं च पीडयते॥१०४ ।। (यदा) जब (भूमिः) पृथ्वी (महनाशब्देनरसति कम्पते) महान शब्द करती हुई अकस्मात काँपने लगे तो (सेनापतिरमात्यश्च) सेनापति और मन्त्री को (राजा राष्ट्रं च) राजा और देश को (पीड़यते) पीड़ा देती है।
भावार्थ-जब पृथ्वी महान् शब्द करके अकस्मात काँपने लगे तो समझो सेनापति, मन्त्री, राजा और देश को पीड़ा होती है।।१०४ ।।
फले फलं यदा किञ्चित् पुष्पे पुष्पं च दृश्यते।
गर्भाःपतन्ति नारीणां युवराजा च वध्यते॥१०५॥
(यदा) जब (फले फलं) फर्लो में फल (किंचित्) किंचित (च) और (पुष्पे पुष्पं दृश्यते) पुष्पों में पुष्प दिखाई दे तो समझो (गर्भा:पतन्ति नारीणां) स्त्रीयों के गर्भ गिर जाते है (च) और (युवराजा वध्यते) युवराज का मरण होता है।
भावार्थ-जल फलों में फल दिखे पुष्पों में पुष्प दिखलाई पड़े तो स्त्रियों के गर्भ पतन का कारण उपस्थित होगा और राजकुमार का वध होगा ।। १०५॥
नर्तनं जल्पनं हासमुत्कीलननिमीलने। देवाः यत्र प्रकुर्वन्ति तत्र विन्धान् महद्भयम्॥१०६॥