Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
भैंसे (पुत्रं ) पुत्र ( बलं ) बल (सेनापतिं) सेनापति (पुरम् ) नगर (पुरोहितं) पुरोहित (नृपं ) राजा (वित्तं ) धन आदि का (ध्वत्यु) नाश करता है।
भावार्थ — इस प्रकार के उत्पात अगर दिखे तो समझो बाहन, सवारी, भैंसें, पुत्र, बल, सेनापति, नगर, पुरोहित, राजा, धन आदि का नाश करते हैं ।। १७७ ॥ एषामन्यतरं हित्वा निर्वृत्तिं यान्ति ते सदा । परं द्वादशरात्रेण सद्यो नाशयिता
पिता ।। १७८ ॥
( एषामन्तरं हित्वा निवृत्तिं यान्ति ते सदा ) जो इस प्रकार के उत्पातों को देखकर जो कोई उनकी अवहेलना करता है तो ( परं द्वादशरात्रेण ) समझो बारह रात्रियों में (सद्योनाशयिता पिता ) शीघ्र ही उसका पिता मर जायगा या अन्य कोई नाश को प्राप्त होगा ।
भावार्थ - इस प्रकार के उत्पातों को देखकर भी इन उत्पातो की जो कोई अवहेलना करता है तो बारह रात्रियों में मर जायगा व उसका पिता मर जाया व अन्य परिवार के लोग नष्ट होंगे ।। १७८ ॥
यत्रोत्पाताः न दृश्यन्ते यथा कालमुपस्थिताः । सञ्चयदोषेण राजादेशश्च
तेन
नश्यति ॥ १७९ ॥
( यथा कालमुपस्थिता: ) जिस काल में उपस्थित ( यत्रोत्पाताः न दृश्यन्ते) जो उत्पात हैं उनको नहीं देखता तो ( तेन) उस (सञ्चयदोषेण ) संचित दोष से ( राजादेशश्च नश्यति) राजा और देश का नाश होगा |
भावार्थ — जिस काल में उत्पन्न होने वाले उत्पातों को नहीं देखता उन उत्पात दोष से राजा और देश दोनों का ही नाश हो जाता है ॥ १७९ ॥
देवान्
प्रब्रजितान्
विप्रांस्तस्माद्राजाऽभिपूजयेत् । तदा शाम्यति तत् पापं यथा साधुभिरीरितम् ॥ १८० ।।
( यथा) जो ( साधुभिरीरितम् ) साधुओं के द्वारा कहा हुआ उत्पातों का ( पापं ) पाप है (तत्) वह (देवान्) देवों की ( प्रब्रजितान् ) साधुओं की (विप्रांस्तस्माद्राजाऽभिपूजयेत्) ब्राह्मणों की, राजा की पूजा करने से (शाम्यति) नष्ट हो जाता है।