Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चदशोऽध्यायः
भावार्थ -- जिस देश का शुक्र विकार रूप होकर घात करे तो समझो उस देश में लगातार चार महीने तक भय होता रहता है अन्य कुछ भी नहीं होता ॥ १७१ ॥ ग्रहो याति प्रवासं यदि कथन । सुभिक्षमाचष्टे सर्ववर्ष समस्तदा ॥ १७२ ॥
(यदि ) यदि (शुक्रोदये) शुक्र का उदय होने पर ( ग्रहो याति प्रवास) कोई ग्रह अस्त हो जाय तो ( कथन :) ऐसा कथन है कि (क्षेमं ) क्षेम (सुभिक्षमाचष्टे ) प्रकार से सुभिक्ष होता है (सर्ववर्ष समस्तदा ) सारे वर्ष आनन्द रहता है। 'भावार्थ- -यदि शुक्र के उदय होने पर अगर कोई ग्रह अस्त हो जाय तो समझो ऐसा कथन है कि क्षेम, सुभिक्ष होता है, सर्व प्रकार से आनन्द होता है वर्षा भी उस वर्ष अच्छी होती है ॥ १७२ ॥
शुक्रोदये क्षेमं
बलक्षोभो भवेच्छ्रयामे मृत्युः
कपिलकृष्णयोः ।
नीले गवां च मरणं रूक्षे वृष्टिक्षयः क्षुधा ॥ १७३ ॥
( बलक्षोभो भवेच्छ्रयामे) यदि शुक्र कालावर्ण का दिखे तो वह बलको क्षुब्ध करता है, ( कपिलकृष्णयोः मृत्युः) पिंगल और काला दिखे तो मरण करता है, ( नीले) नीला दिखे तो ( गवां च मरणं) गायों के मरण का कारण होता है (रूक्षे ) रूक्ष हो तो ( वृष्टिक्षयः क्षुधा ) वर्षा का नाश तथा भूख की वेदना होती है।
भावार्थ-- यदि शुक्र काला रंग का दिखे तो बल क्षोभ की प्राप्ति होती है पिंगल और काला मिश्र दिखे तो मरण का सूचक है नीला हो तो गायों के मरण का कारण होता है और रूक्ष दिखे तो वर्षा का नाश होता है तथा भूख की व्याधा फैलेगी ॥ १७३ ॥
वाताक्षिरोगो माजिष्ठे पीते शुक्रे ज्वरो कृष्णे विचित्रे वर्णे च क्षयं लोकस्य
भवेत् । निर्दिशेत् ॥ १७४ ॥
(शुक्रे) शुक्र (माञ्जिष्ठे) मंजिष्ठवर्ण के हो तो (वाताक्षिरोगो) वात और अक्षिरोग उत्पन्न करता है ( पीले) पीला है तो (ज्वरो भवेत् ) ज्वर करता है (कृष्णे विचित्रे वर्णे च ) और काला या विचित्र वर्ण वाला हो तो (लोकस्यक्षयं निर्दिशेत् ) लोक का क्षय करेगा ऐसा कहना चाहिये ।