Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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(तदा) तब इस प्रकार का वक्री शुक्र (ग्राम) गाँव, (नगरं) नगर (धान्यं) धान्य (च) और (पल्वलोदकान्) छोटे तालाब (धन धान्यं च) धन और धान्यों को (विविधं हरन्ति च दहन्ति च) विविध प्रकार हरण करता है और जलाता है।
भावार्थ-वक्री शुक्र गाँव, नगर, धान्य, तालाब, धन-धान्य आदि को विविध प्रकार से जलाता है नष्ट करता है॥१८८।।
द्वाविंशति यदा गत्वा पुनरायाति विंशतिम्।
भार्गवोऽस्तमने काले तबकं शोभनं भवेत्॥१८९॥ (यदा) जब (भार्गवोऽस्तमने काले) शुक्र के अस्त काल में (द्वाविंशतिं गत्वा) बाईसवें नक्षत्र पर जाकर (पुनरायाति विशांतम्) पुनः बांसवें नक्षत्र तक वापस लोट आवे तो (तद्वक्रं शोभनं भवेत्) इस प्रकार के वक्र शुभ माना है।
भावार्थ---जब शुक्र के अस्तकाल में बाईसवें नक्षत्र तक जाकर पुन: बीसवें नक्षत्र तक लौट आवे तो ऐसा वक्री शुक्र शुभ माना है। १८९॥
क्षिप्रमोदं च वस्त्रं च पल्वलां औषधींस्तथा।
हृदान् नदीश्च कूपांश भार्गवो पूरयिष्यति॥१९०॥ इस प्रकार के शोभन (भार्गवो) शुक्र (क्षिप्रमोदं च वस्त्रं च) आमोद-प्रमोद वस्त्र प्राप्ति करता है और (पल्वला) तालाबों का जल से पूर्ण होना (तथा औषधी) तथा औषधियों की उपज (हदान् नदीश्च कूपांश्च) ह्रद, नदी और कूए (पूरयिष्यति) पूर्ण हो जाते हैं।
भावार्थ-इस प्रकार शुक्र अमोद-प्रमोद और वस्त्र प्राप्ति कराता है तालाबों को जल से पूर्ण भर देता है तथा औषधियों की उपज अच्छी कराता है, सरोवर, नदी, कू, सब भर जाते है॥१९॥
त्रिविंशति यदा गत्वा पुनरायाति विशतिम्।
भार्गवोऽस्तमने काले तर्क दीप्तमुच्यते॥१९१।। (यदा) जब (भार्गवोऽस्त मने काले) शुक्र अस्त काल में (त्रिविंशतिगत्वा) तेइसवें नक्षत्र तक जाकर (पुनरायाति विशितिम्) पुन: बीसवें नक्षत्र तक वापस लौट आवे तो (तदनं दीप्तमुच्यते) इस प्रकार का शुक्र दीप्त कहा जाता है।