Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
४६७
। पञ्चदशोऽध्यायः ।
भावार्थ-व्योम वीथि में गमन करने वाला शुक्र बीस, तीस, चालीस खारी प्रमाण अन्न का भाव होता है।। १६४ ।।
चत्वारिंशद् पञ्चाशद् वा षष्टिं वाऽथ समादिशेत्।
जरद्गवपथं प्राप्ते भार्गवे खारिसंज्ञया॥१६५।। (जरद्गवपथं प्राप्ते) जरगव वीथि में शुक्र गमन करे तो (चत्वारिंशद् पञ्चाशद् वा) चालीस, पचास व (षष्टिं वाऽथ समादिशेत्) साठ (खारी संज्ञया) प्रमाण अन्न का भाव होगा।
भावार्थ-जरद्गव वीथि में शुक्र गमन करे तो चालीस, पचास, साठ खारी प्रमाण अत्र का भाव होता है॥१५॥
सप्ततिं चाथ वाऽशीतिं नवतिं वा तथा दिशेत्।
अजवीथीगते शुक्रे . भद्रबाहुवचो यथा॥१६६॥ (अजवीथीगते शुक्रे) अजवीथि में गमन करने वाला शुक्र (सप्तति) सत्तर (चाथ वाऽशीति) व अस्सी (नवतिं वा तथा दिशेत्) और नब्बे खारी प्रमाण अन्न होगा (यथा) ऐसा (भद्रबाहुवचो यथा) भद्रबाहु स्वामी का कथन है।
भावार्थ-अज वीथि में गमन करने वाला शुक्र सत्तर, अस्सी, नब्बे खारी प्रमाण अन्न का भाव करता है।। १६६॥
विंशत्यशीतिका खारि शतिकामप्ययथा दिशेत्।
मृगवीथीमुपागम्य विवर्णोभार्गवो यदा ।। १६७॥ (यदा) जब (विवर्णो) विवर्ण होकर (भार्गवो) शुक्र (मृगवीथीमुपागम्य) मृगवीथि में गमन करे तो (विंशत्यशीतिकां) बीस, अस्सी (अपि यथा) और भी (शतिकाम् खारी दिशेत्) सौ खारी प्रमाण अन्न का भाव करता है।
भावार्थ-जब शुक्र विवर्णी होकर मृग वीथि में गमन करे तो बीस, अस्सी, सौ खारी प्रमाण अन्न का भाव करेगा॥१६७॥
विच्छिन्नविषमृणालं न च पुष्पं फलं यदा। वेश्वानरपथं प्राप्तो यदा वामस्तु भार्गवः ॥१६८॥