Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
वामो वदेत् यदा खारीं विशकां त्रिंशकामपि।
करोति नागवीथीस्यो भार्गवश्चार मार्गगः ।। १६१॥ (नागवीथीस्थो भार्गव:) नाग वीथि का शुक्र (वामो) वामगत (चार मार्गगः) विचार करने वाला हो तो (विशकां त्रिशकामपि) दस, बीस, तीस (खारी) खारी प्रमाण भाव (करोति) करता है ऐसा (वदेत्) कहे।
भावार्थ-.-... लागनीधि में शुक्र वाममार्ग से संचार करे तो समझों दस, बीस, तीस खारी प्रमाण अन्न का भाव होगा ऐसा कहे।। १६१॥
विंशका त्रिंशका खारी चत्वारिंशति काऽपि वा। ,
वामे शुक्रे तु विज्ञेया गजवीथीमुपागते॥१६२॥ (गजवीथीमुपागते) गजवीथि में विचरण करने वाला (वामे शुक्रे) वाम मार्ग का शुक्र (विज्ञेया) हो जाय (तु) तो (विंशका त्रिंशका खारी चत्वारिंशति काऽपि वा) बीस, तीस और चालीस खारी प्रमाण अन्न का भाव करता है।
भावार्थ-वाम मार्ग का शुक्र गजवीथि में विचरण करे तो समझों बीस, तीस, चालीस खारी प्रमाण अन्न का भाव होगा ।। १६२॥
ऐरावणपथे त्रिंशच्चत्वारिंशदथापि वा।
पञ्चाशीतिका ज्ञेया खारी तुल्यातु भार्गवः ॥१६२॥ (ऐरावणपथे) ऐरावण पथ में (भार्गव:) शुक्र गमन करे तो (त्रिंशच्चत्वारिंशदधापि वा) तीस, चालीप्स और भी (पञ्चाशीतिका) पचास (खारी) खारी (तुल्या तु ज्ञेया) प्रमाण अन्न का भाव होगा।
भावार्थ- यदि ऐरावण पथ में शुक्र गमन करे तो तीस, चालीस, पचास प्रमाण अन्न का भाव होता है,।। १६३॥
विंशका त्रिंशका खारी चत्वारिंशति काऽपि वा।
व्योमगो वीथिमागम्य करोत्यर्धेण भार्गवः ।।१६४॥ (न्योमगोवीथिमागम्य) व्योम वीथि में गमन करने वाला (भार्गव:) शुक्र (विशका त्रिंशका) बीस, तीस और (चत्वारिंशतिकाऽपि वा) चालीस (खारी) खारी प्रमाण भाव (करोत्यर्पण) करता है।