Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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होता है जिसको (पूर्वत: पृष्ठतश्चापि) पूर्व से पश्चिम तक के (समाचारो भवेल्लघुः) फल को कहा गया है।
भावार्थ---इस प्रकार के शुक्र संचार का फल होता है जिसको की पूर्व से पीछे तक के समाचारों को कहा गया है॥१५४!!
उदये च प्रवासे च ग्रहाणां कारणं रविः।
प्रवासं छादयन्कुर्यात् मुञ्चमानस्तथोदयम् ।। १५५॥ (ग्रहाणां) ग्रहों के (उदये च प्रवासे च) उदय और प्रवास में (कारणं रवि) सूर्य ही कारण है, (प्रवासं छादयन्कुर्यात्) जब सूर्य ग्रहों को आच्छादित करता है, तो उनका अस्त कहा जाता है (मुञ्चमानस्तथोदयम्) जब छोड़ता है तो उदय कहलाता है।
भावार्थ-जब ग्रहों के उदय और प्रवास में कारण सूर्य है, जब सूर्य ग्रहों को आच्छादित (ढकता है) करता है तो उसको अस्त कहते हैं और जब ग्रहों को सूर्य छोड़ देता है तो उसको उदय कहते हैं॥१५५ ।।
प्रवासाः पञ्च शुक्रस्य पुरस्तात् पञ्चपृष्ठतः।
मार्गे तु मार्गसन्ध्याश्च वक्रे वीथीसु निर्दिशेत्॥१५६॥ (शुक्रस्य) शुक्र के (प्रवासाः) सम्मुख और (पृष्ठतः) पीछे से (पञ्च-पञ्च पुरस्तात्) पाँच-पाँच प्रकार से अस्त है (मार्गेतु) मार्गी होने पर (मार्ग सन्ध्याश्च) मार्गसन्ध्या होती है (वक्रे वीथी निर्दिशेत्) तथा वक्री का कथन भी वीथियों में अवगत करे।
भावार्थ-आचार्य श्री का कथन है कि शुक्र सामने और पीछे से पाँच-पाँच प्रकार के अस्त है शुक्र के मार्ग होने पर मार्गसन्ध्या होती है ऐसा वक्री का कथन भी वीथियों में जानना चाहिये ।। १५६॥
त्रैमासिक: प्रवास: स्यात् पुरस्तात् दक्षिणे पथि। पञ्च सप्ततिर्मध्ये स्यात् पञ्चाशीति स्तथोत्तरे ॥१५७॥ चतुर्विशत्य हानि स्युः पृष्ठतो दक्षिणे पथि। मध्ये पञ्चदशाहानि षडहान्युत्तरे पथि ।। १५८॥