Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चदशोऽध्यायः
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(अश्वपण्योपजाविनो हन्ति) अश्व के व्यापारियों का (हन्ति) घात करता है (अथ तु वामग:) और यदि वाम भाग का हो तो (तेषां) उनमें (व्याधि तथा मृत्यु सृजत्यथ) व्याधि तथा मृत्यु का सृजन करता है।
भावार्थ-यदि उपर्युक्त नक्षत्रका शक दक्षिण में हो तो घोड़े के व्यापारियों को मारता है और वाम भाग का हो तो उनमें व्याधियाँ तथा मृत्यु की प्राप्ति करता है।। १५१॥
भृत्यकरान् यवनांश्च भरणीस्थः प्रपीडयेत्। किरातान्
मद्रदेशानामाभीरान्मर्द-रोहणे॥१५२ ॥ यदि (भरणीस्थः) भरणी नक्षत्र में शुक्र गमन करे तो (भृत्यकरान् यवनांश्च प्रपीडयेत्) नौकरों को व यवनों को पीड़ा देता है, उसी नक्षत्र में यदि (मदरोहणे) मर्दन व रोहण करे तो (किरातान) किरात (मद्रदेशानामाभिरान) और मद्र देश को और आभीर देश को पीड़ा देता है।
भावार्थ-यदि भरणी नक्षत्र में शुक्र गमन करे तो नौकरों को और मुसलमानों को पीड़ा देता है, मर्दन भी करे और आरोहण भी उक्त शुक्र करे तो किरातभद्रदेश और आभीर देशवासियों को पीड़ा देता है॥१५२।।
प्रदशिणं प्रयातश्च द्रोणं मेघं निवेदयेत्।
वामगः सम्प्रयातस्य रुद्रकर्माणि हिंसति॥१५३॥ वही शुक्र उसी नक्षत्रमें (प्रदक्षिणं) दक्षिण का हो तो (प्रयानश्चद्रोण मेघं निवेदयेत्) एक द्रोण प्रमाण वर्षा को कहे (वामगः) वाम भाग का हो तो (सम्प्रयातस्य रुद्रकर्माणि हिंसति) रूप कार्यों का विनाश करता है।।
भावार्थ-यदि उपर्युक्त शुक्र दक्षिण का हो तो द्रोण प्रमाण वर्षा कहे और वाम भाग का हो तो रोद्र कर्मों का नाश होगा ऐसा कहे आने वालो को॥१५३ ।।
एवमेतत् फलं कुर्यादनुचारं तु भार्गवः।
पूर्वतः पृष्ठतश्चापि समाचारो भवेल्लघुः ॥१५४॥ (एवमेतत्) इस प्रकार (भार्गव:) शुक्र (कुर्यादनुचार) संचार कर (फलं) फल
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