Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
કર
नागरांश्चोप) नगरवासी और नगर की (दुः प्रभश्चकृशो यदा) जिस प्रकार दुष्प्रभाव होता है उसी प्रकार ( भयान्तिकं हिंसति) भय को उत्पन्न करने वाली हिंसा करता
है।
भावार्थ — रेवती नक्षत्र को यदि शुक्रगमन करे तो नगर और नगरवासीयों की हिंसा करता है ॥ १४८ ॥
मर्दनारोहणे
हन्ति
नाविकानथ नागरान् । दक्षिणे गोपिकान् हन्ति चोत्तरो भूषणानि तु ॥ १४९ ॥
यदि शुक्र उपर्युक्त नक्षत्र को (मर्दनारोहणे ) मर्दन व रोहण करे तो ( नाविकारथ नागरान् हन्ति) नाविकों व नगरवासियों का घात करता है (दक्षिणे गोपिकान् हन्ति ) दक्षिण का हो तो गोपियों का नाश करता है, (उत्तरे भूषणानि तु ) उत्तर का हो तो भूषणों का नाश करता है।
भावार्थ-यदि शुक्र उपर्युक्त नक्षत्र को मर्दन अथवा आरोहण करे तो नाविको व नागरिकों का नाश करता है दक्षिण का हो तो गोपियों का नाश करेगा, उत्तर का हो तो भूषणों का नाश करता है ।। ९४९ ॥
हन्यादश्विनीप्राप्तः
सिन्धुसौवीरमेव
च।
मत्स्याश्च कुनटान् रूढो मर्दमानश्च हिंसति ॥ १५० ॥
( अश्विनीप्राप्तः ) अश्विनी नक्षत्र में शुक्र गमन करे तो (सिन्धु सौवीरमेव च) सिन्धु और सौवीर देश को ( हन्याद्) मारता है ( रूढोमर्दमानश्च ) और आरोहण कर अथवा मर्दन करे तो (मत्स्याश्च कुनटान् हिंसति) मत्स्य और कुनटान का घात करता है।
भावार्थ — अश्विनी नक्षत्र में शुक्र गमन करे तो सिन्धु सौवीर का घात करेगा, और आरोहण मर्दन करे तो मत्स्य कुनटान का घात करेगा ।। १५० ॥ अश्वपण्योपजीविनो दक्षिणो हन्ति भार्गवः ।
तेषां व्याधिं तथा मृत्युं सृजत्यथ तु वामगः ॥ १५१ ॥ यदि अश्विनी नक्षत्र का ( भार्गवः) शुक्र (दक्षिणो) दक्षिण में हो तो