Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ-यदि शुक्र शतभिखा नक्षत्र को गमन करे तो शलाकिण व शीलकुटों का नाश करता है उसी प्रकार आरोहण व मर्दन करे तो कालकूट व कुनाटों का नाश करेगा ॥ १४२ ॥
दक्षिणो नीचकर्माणि हिंसते वामगो दारुणं व्याधिं ततः
यदा भाद्रपदां सेवेत् मलयान्मालवान् हन्ति
उसी नक्षत्र को यदि (भार्गवः) शुक्र (दक्षिणो) दक्षिण का हो तो। (नीचकर्मिणः हिंसते ) नीच कर्मधारियों का नीचकर्म नाश होता है (वामागो) वाम भाग का हो तो (ततः) वहाँ पर (दारुणं व्याधिं सृजति) दारुण दुःख को उत्पन्न करता है।
भावार्थ -- यदि उसी नक्षत्र शुक्र दक्षिण भाग में हो तो नीच कर्म करने व लोके नीचकर्म का नाश होता है और वाम भाग में हो तो महान् व्याधि और दारुण दुःख को उत्पन्न करता है ॥ १४३ ॥
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कर्मिणः ।
नीच सृजति भार्गवः ॥ १४३ ॥
दूतोप जीविनो वैद्यान् वामगः स्थविरान् हन्ति
धूर्तान् दूतांश्चहिंसति । मर्दनारोहणे तथा ।। १४४ ॥
( यदा) जब शुक्र (भाद्रपद) पूर्वा भाद्र पद नक्षत्र ( सेवेत ) की सेवा करे तो ( धूतान् दूतांश्च) धूत और दूतों की (हिंसति) हिंसा करता है उसी प्रकार ( मदनारोहणे तथा ) तथा मर्दन व आरोहण करे तो (मलयान्मालवान् हन्ति ) मलय व मालव देश का नाश करता है ।
भावार्थ — जब शुक्र पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र को गमन करे तो धूर्त और दूतों का नाश करता है उसी प्रकार मर्दन और आरोहण करे तो मलय और मालव देशवासीयों का नाश करता है ॥ १४४ ॥
प्रहिंसति ।
दक्षिणस्थ: भद्रबाहुवचो
यदि शुक्र उपर्युक्त नक्षत्र में (दक्षिणस्थः) दक्षिण दिशा का हो तो ( दूतोप जीविनो वैद्यान् प्रहिंसति) दूत की आजीविका करने वालों का त्र वैद्यो का नाश करता है (वामगः ) वाम भाग का हो तो ( स्थविरान् हन्ति) स्थविरों का नाश करता है (भद्रबाहुवचो यथा) ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
यथा ॥ १४५ ॥