Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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(यदा) जब (भार्गव:) शुक्र (वामस्तु) वाममार्गी होकर (वैश्वानरपथं प्राप्तो) वैश्वानर पथ पर गमन करे तो (विषमृणालं न च पुष्पं फलं विच्छिन्न) विष, मृणाल, पुष्प और फल (विच्छिन्न) उत्पन्न नहीं होते।
भावार्थ-जब शुक्र वामभागी होकर वैश्वानर पथ में गमन करे तो, विषपत्र, पुष्प, फल आदि उत्पन्न नहीं करने देता है॥१६८।।
अनुलोमो विणयं ब्रूते प्रतिलोमः पराजयम्।
उदयास्तमने शुक्रो बुधश्च कुरुते तथा ।। १६९॥ (शुक्रो बुधश्च अनुलोमो उदयास्तमने) शुक्र और बुध अनुलोम उदय अस्त को प्राप्त होने पर (विजयं ब्रूते) विजय करता है ऐसा कहे, (प्रतिलोमः पराजयम्) प्रतिलोम हो तो पराजय कराता है।
भावार्थ-शुक्र और बुध अनुलोम उदय अस्त को प्राप्त होने पर विजय करता है यदि वही प्रतिलोभी हो तो पराजय कराता है।। १६९ ॥
मार्गमेकं समाश्रित्य सुभिक्ष क्षेमदस्तथा।
उशना दिशतितरां सानुलोमो न संशयः॥१७०॥ (उशना दिशातितरां) शुक्र सीधी दिशा में (मार्गमेकां समाश्रित्य) एक ही मार्ग का आश्रय लेकर (सानुलोमो) वह अनुलोम रूप गमन करे तो (सुभिक्ष क्षेमदस्तथा न संशय) समझो सुभिक्ष, क्षेम होता है इसमें कोई सन्देह नहीं है।
भावार्थ-यदि शुक्र सीधी दिशा में एक ही मार्ग से अनुलोम रूप गमन करे तो समझो वहाँ पर सुभिक्ष क्षेम होता है इसमें कोई सन्देह नहीं है।। १७० ।।
यस्य देशस्य नक्षत्रं शुक्रो हन्यद्विकारगः।
तस्मात् भयं परं विन्धाच्चतुर्मासं न चापरम्।।१७१॥ (यस्य) जिस (देशस्य) देशका (नक्षत्रं) नक्षत्रको (शुक्रो) शुक्र (विकारगः) विकार रूप (हन्याद्) घात करे तो (तस्मात्) इस कारण से (चतुर्मासं परं भयं विन्द्यात) समझो चार महीने तक बहुत भय उत्पन्न होता है (न चापरम्) दूसरी कोई बात नहीं है।