Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पन्चशोऽध्यायः
वक्रं याते द्वादशाहं समक्षेत्रे दशालिकम्।
शेषेषु पृष्ठतो विन्द्यात् एकविंशमहोनिशम्॥१७८ ॥ शुक्र को (वर्क) वक्री (याते) होने पर (द्वादशाह) बारह दिन और (समक्षेत्रे दशाह्निकम्) सम क्षेत्र में दस दिन एक नक्षत्र के भोग में लगते है (पृष्ठतो) पीछे की ओर गमन करने पर (शेषेषु) शेष में (एकविंशमहोनिशम् विन्धात) उन्नीस दिन एक नक्षत्र के भोग में लगते हैं।
भावार्थ-शुक्र को वक्री होने पर बारह दिन और सम क्षेत्र में दस दिन एक नक्षत्र के भोग में लगते हैं, पीछे की ओर गमन करने पर शेष में उन्नीस दिन एक नक्षत्र के भोग में लगते हैं।॥१७८॥
पूर्वतः समचारेण पञ्च पक्षण भार्गवः।
तदा करोति कौशल्यं भद्रबाहुवचो यथा ॥१७९॥ (पूर्वतः) पूर्व से (सम चारेण) गमन करता हुआ (भार्गवः) शुक्र (पञ्च) पाँच (पक्षेण (तदा) (मौशल कति) कौराला करता है ऐसा (भद्रबाहु वचोयथा) भद्रबाहु का वचन है।
भावार्थ-पूर्व से गमन करता हुआ शुक्र पाँच पक्ष तक कौशल करता है ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है॥१७९ ॥
ततः पञ्चदशाणि सञ्चरत्युशना पुनः।
षड्भिर्मासैस्ततो ज्ञेयः प्रवासं पूर्वत: परम्॥१८॥ (ततः) इसके पश्चात् शुक्र (पञ्चदशाणि) पन्द्रह नक्षत्र (सञ्चरत्युशनापुनः) चलता है, हटता है (पुन:) फिर (षभिमासैस्ततोज्ञेय: प्रवासं पूर्वत: परम्) छह महीनों में प्रवास को प्राप्त हो जाता है।
भावार्थ-जब शुक्र पन्द्रह नक्षत्र चलता है, तो समझो उसका चार छह महीनों में जाकर पुनः प्रवास को प्राप्त करता है। १८० ।।
द्वाशीति चतुराशीति षडशीतिञ्च भार्गवः ।
भक्तं समेषु भागेषु प्रवासं कुरुते समम्॥१८१॥ (द्वाशीति) बियासी (चतुराशीति) चौरासी, (षडशीतिञ्च) और छियासी दिनों