Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चदशोऽध्याय:
भावार्थ-यदि शुक्र उपर्युक्त नक्षत्र में दक्षिण का हो तो वैद्यां का व दूतों का नाश करता है वाम भागका हो तो स्थविरों का नाश करता है । ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है॥१४५ ।।
उत्तरां तु यदा सेवेज्जलजान् हिंसते सदा।
वत्सान् बाहीक गान्धारानारोहणप्रमर्दने॥१४६॥ यदि शुक्र (उत्तरांतु यदासेवेत्) उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में गमन करे तो (जलजान् सदा हिंसते) जलकाय जीवों की सदा हिंसा करता है (रोहणप्रमर्दने) उसी प्रकार मर्दन व आरोहण करे तो (वत्सान्) वत्स, (बाह्रीका) वाहीक (गान्धाराना) गान्धारवासियों की हिंसा करता है।
भावार्थ-यदि शुक्र उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में गमन करे तो जलकाय जीवों की हिंसा करता है उसी प्रकार उक्त नक्षत्र मर्दन व आरोहण करे तो वत्स व वाहीक गान्धारवासियों का नाश करता है ।। १४६ ।।
दक्षिणे स्थावरान् हन्ति वामगः स्याद् भयङ्करः।
मध्यगः सुप्रसन्नश्च भार्गव: सुखमावहेत् ।। १४७॥ यदि (भार्गवः) शुक्र (दक्षिणे) दक्षिण में दिखे तो (स्थावरान् हन्ति) स्थावरों का नाश करता है (वामगः स्याद् भयङ्करः) वाम भाग में हो तो भयंकर होता है (मध्यग:) यदि मध्यमें हो तो (सुप्रसन्नश्च सुखभावहेत) उत्तम और सुख देने वाला होता है।
भावार्थ-यदि दक्षिण दिशा का शुक्र उपर्युक्त नक्षत्र में दिखे तो स्थावरों का नाश करेगा, वाम भाग में दिखे तो महान् भयंकर होता है मध्यम का हो तो प्रशन्न रूप और सुख देने वाला होता है।। १४७॥
भयान्तिकं नागराणां नागरांश्चोप हिंसति।
भार्गवो रेवतीप्राप्तो दुःप्रभश्च कृशो यदा॥१४८॥ यदि (भार्गवो) शुक्र (रेवतीप्राप्तो) रेवती नक्षत्र में गमन करे तो (नागराणां