Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चदशोऽध्यायः
(अथगोमूत्र गतिमान्) गोमूत्र के समान चलने वाला (भार्गवो) शुक्र (नाभिवर्षति) नहीं वर्षा होती है (सर्वमण्डल दुर्गतौ) अन्य सभी मण्डलों में रहने वाले शुक्र (विकृतानि च वर्तन्ते) उत्पातकारक है।
भावार्थ-जो गोमूत्र के समान टेड़ा चलने वाला शुक्र वर्षा नहीं होने देता है। चौथा और छठा मण्डल शुक्र छोड़कर अन्य सभी मण्डलों में रहने वाला शुक्र विकृत मनात करने वाला होता हैं।।:३१
प्रथमे मण्डले शुक्रो यदास्तं यात्युदेति च।
मध्यमा सस्य निष्पत्तिमध्यमं वर्षमुच्यते ॥ १४ ॥ (प्रथमे मण्डले शुक्रो) प्रथम मण्डलमें शुक्र (यदास्तं यात्युदेति च) जब उदय या अस्त हो तो (मध्यम वर्ष मुच्यते) वर्षा मध्यम होती है (सस्यनिष्पत्ति: मध्यमा) धान्यो की उत्पति भी मध्यम होती है।
भावार्थ-प्रथम मण्डल में शुक्र याने भरणी कृत्तिका, रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्रमें अस्त हो या उदय हो तो उस वर्ष वर्षा मध्यम होती है और धान्य भी मध्यम होता है।।१४॥
भोजान् कलिङ्गानुङ्गांच काश्मीरान् दस्यु मालवान्।
यवनान् सौर सेनांश्च गोद्विजान् शबरान् वधेत्॥१५॥ (भोजान्) भोज (कलिऑनुगांश्च) कलिङ्ग, उङ्ग (काश्मीरान्) काश्मीर, (दस्यु) यवन् (मालवान्) मालव (यवनान्) यवन देश (सौर सेनांश्च) सोरसेन और (गोद्विजान्) गोत्र, द्विज, (शबरान्) और शबरों का उक्त प्रकार का शुक्र अस्त उदय हो तो वध करता है।
भावार्थ-भोज कलिंग, उङ्ग काश्मीर यवन, मालव सोरसेन गोत्र द्विज और शबरों का उक्त शुक्र अस्त या उदय हो तो समझो इन सबका वध होता है, उक्त प्रदेश के लोगों का वध होता है।। १५||
पूर्वतः शीर कालिङ्गान् मागधो जयते नृपः।
सुभिक्षं क्षेममारोग्यं मध्य देशेषु जायते॥१६॥ (पूर्वतः) पूर्व में (शीर: कालिनान्) शीर और कालिङ्ग (मागधो नृपः जयते)