Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
चतुर्थेविचरन् शुक्रो शयी हन्यात् सुयानकान् । शस्यशेषं च सृजते निन्दितेन विलम्बिना ॥ ८० ॥
( चतुर्थे शुक्रो शयी विचरन्) चतुर्थ मण्डल में सोता हुआ शुक्र गमन करे तो ( सुयानकान् हन्यात्) अच्छे वाहनों का नाश करता है (निन्दितेन विलम्बिना ) और निन्दित होने पर विलम्बित होने पर ( शस्य शेष च सृजते ) धान्यों का विनाश करता है।
भावार्थ-यदि चतुर्थ मण्डल में सोता हुआ शुक्र गमन करे तो अच्छे वाहनों का नाश करता है और निन्दित शुक्र व विलम्बित शुक्र धान्यों का नाश करता है ॥ ८० ॥
पञ्चमे विचरन् शुक्रो हन्याच्च मण्डलं देणं
दुर्भिक्षं जनयेत् तदा । श्रीनाथ शिवि
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(पञ्चमे विचरन् शुक्रो ) पंचम मण्डल में यदि शुक्र (क्षीणेनाथ विलम्बिना ) क्षीण और विलम्ब हो तो ( तदा) तब ( दुर्भिक्षं जनयेत् ) दुर्भिक्ष की उत्पति करता है ( देशमण्डलं हन्याच्च) उस मण्डल और देश का नाश करता है ।
भावार्थ – यदि पंचम मण्डल में शुक्र क्षीण और विलम्बित हो तो उस मण्डल या देश का नाश करता है दुर्भिक्ष की उत्पत्ति करता है ॥ ८१ ॥
यदा तु भण्डले षष्ठे भार्गवश्चिरगो
भवेत् ।
तदा तं मण्डलं देशं हन्ति लम्बेन् पाशिना ॥ ८२ ॥
( यदा) जब (षष्ठेमण्डले) षष्ठ मण्डल में (भार्गवश्चिरगो भवेत् ) शुक्र अधिक समय तक गमन करे तो (तदा) तब (तं) उस ( मण्डलं ) मण्डल और (देश) देश को (लम्बेन पाशिना हन्ति ) लम्बायमान पास के समान नाश करता है ।
भावार्थ- -जब षष्ठ मण्डल में शुक्र अधिक समय तक गमन करे तो उस देश व मण्डल का लम्बायमान पास के समान नाश करता है ॥ ८२ ॥
हीन चारे जनपदानारिकते नृपं समे तु समतां विन्द्याद्विषमे विषमं
वधेत् । वदेत् ॥ ८३ ॥